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पुण्य तत्त्व : स्वरूप और महत्त्व
‘पुनाति आत्मानम् इति पुण्यम्' अर्थात् जिससे आत्मा पवित्र हो वह पुण्य है। यह परिभाषा प्राचीन काल से सभी जैनाचार्यों को मान्य है,
यथा
पुण्णं पूदपवित्ता पसत्थसिवभद्दखे मकल्लाणा । सुहसोक्खादी सव्वे णिद्दिट्ठा मंगलस्स पज्जाया ।।
अर्थ -
- पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, भद्र, क्षेम, कल्याण, शुभ, सौख्य और मंगल, ये सब समानार्थक पर्यायवाची शब्द कहे गये हैं।
-तिलोयपण्णत्ति, गाथा 8
पुनात्यात्मानं पूयतेऽनेनेति वा पुण्यम्।
अर्थ-जो आत्मा को पवित्र करता है या जिस (कार्य) से आत्मा
पवित्र होती है, वह पुण्य है।
-सर्वार्थसिद्धि 6.3
‘पवित्रीकरोत्यात्मानमिति पुण्यं शुभं कर्म ।' अर्थ-जो आत्मा को पवित्र करता है वह शुभ कर्म पुण्य है।
-स्थानांग-अभयदेवसूरिवृत्ति