________________
पुण्य-पाप तत्त्व और पुण्य-पाप
कर्म में अंतर
कुंदकुंदाचार्य ने कहा है
सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं ति हवदि जीवस्स। शुभ परिणाम पुण्य है और अशुभ परिणाम पाप है।
__-पंचास्तिकाय, 132 'पुण्य-पाप तत्त्व' शुभ-अशुभ परिणामों (भावों) से संबंध रखता है न कि पुण्य-पाप कर्म-प्रकृतियों के बंध से, क्योंकि पुण्य-पाप कर्म प्रकृतियाँ बंध तत्त्व से संबंधित हैं। जैसाकि आचार्य पूज्यपाद ने तत्त्वार्थ सूत्र, 6.3 की सर्वार्थ सिद्धि टीका में कहा है
कः शुभो योगः को वाऽशुभः? प्राणातिपातादत्तादानमैथुनादिरशुभकाययोगः। अनृतभाषणपरुषासभ्यवचनादिरशुभो वाग्योगः। वधचिन्तनेासूयादिरशुभो मनोयोगः ततो विपरीतः शुभः। कथं योगस्य शुभाशुभत्वम्। शुभ परिणामनिवृत्तो योगः शुभः। अशुभपरिणामनिवृत्तश्चाशुभः। न पुनः शुभाशुभ-कर्मकारणत्वेन। यद्येवमुच्यते शुभयोग एव न स्यात् शुभयोगस्यापि ज्ञानावरणा-दिबंधहेतुत्वाभ्युपगमात्। पुनात्यात्मानं पूयतेऽनेनेति वा पुण्यम्।। तत्सद्वेद्यादि। पाति रक्षति आत्मानं शुभादिति पापम्। तदसāद्यादि।
शंका-शुभ योग क्या है और अशुभ योग क्या है?