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अनुकम्पा से पुण्यास्रव व कर्म-क्षय दोनों होते हैं ------
-----199 ही बढ़ता जाता है साथ ही स्थिति घटती जाती है। तात्पर्य यह है कि बंध का कारण प्रवृत्ति के साथ रहा हुआ करने का राग व फलासक्ति रूप कर्तृत्व-भोक्तृत्व है। कर्तृत्व-भोक्तृत्वभाव रहित सहज स्वभाव व गुण का व्यक्त रूप होने से बंध का कारण नहीं है। स्वभाव कभी भी बंध रूप नहीं होता है। बंध विभाव या दोष से ही होता है। अत: कर्म सिद्धांत में पुण्य प्रकृतियों का जो बंध कहा है, वह उस प्रवृत्ति में रहे हुये करने के राग व फलासक्ति रूप कर्तृत्व और भोक्तृत्व भाव रूप पाप (कषाय) के कारण से है, पुण्य के कारण से नहीं।
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