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--- पुण्य-पाप तत्त्व हो, चाहे कामना की अपूर्ति हो, चाहे कामना की पूर्ति हो सभी अवस्थाओं में अभाव व दरिद्रता जुड़ी हुई है। अत: कामना के त्याग से ही दरिद्रता का अंत संभव है। दरिद्रता का अंत ही समृद्धि का, संपन्नता का सूचक है। कारण कि कामना न रहने पर कुछ भी पाना शेष नहीं रहता है। ‘पाना' शेष न रहना ही सच्ची समृद्धि व सम्पन्नता है। पूर्ण रूप में कामना रहित होना दान, लाभ, भोग, उपभोग व करने की लेशमात्र भी कामना न रहना वीतराग होना है। अत: वीतरागता से ही सच्ची समृद्धि व सम्पन्नता की उपलब्धि होती है, जिसका अंत कभी नहीं होता है। जहाँ वीतरागता है वहाँ अनंत समृद्धि, अनंत संपन्नता, अनंत वैभव है।
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