Book Title: Punya Paap Tattva
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 291
________________ (26) पुण्य : सोने की बेड़ी नहीं, आभूषण है विषय-कषाय जन्य सुखों की पूर्ति अपने से भिन्न (पर) पदार्थों से होती है। ऐसा सुख-भोग विकार है, विभाव है, दोष है। इन्द्रियों के विषय भोग, सम्मान, सत्कार आदि की पूर्ति शरीर, इन्द्रिय, वस्तु, व्यक्ति परिस्थिति, बल आदि के अधीन है। अत: विषय-कषाय का भोगी व्यक्ति शरीर, इन्द्रिय, मन, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, धन-सम्पत्ति आदि का दास या पराधीन हो जाता है, इनसे बंध जाता है। अत: भोग से व्यक्ति शरीर, इन्द्रिय, भोग्य वस्तुओं आदि की पराधीतना में बंधनों में, कारागार में आबद्ध हो जाता है। इस प्रकार पाप बेड़ी तो लोहे की ही होती है, बेड़ी कहीं पर भी, कभी भी स्वर्ण की नहीं बनायी जाती है। अत: सोने की बेड़ी कहना बेड़ी शब्द के अर्थ को खोना है। विषय-कषाय आदि पापों का सेवन करने वाला व्यक्ति अपने सुख प्राप्ति के लिए हिंसा, झूठ, शोषण, अपहरण, धोखाधड़ी, कलह, संघर्ष आदि अशोभनीय, अनादरणीय आचरण करता है। अत: दोष दूषण हैं। ___ पाप के विपरीत पुण्य है। क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कषायों में पापों में कमी होने व इनका क्षय होने से क्षमा, मृदुता, सरलता, सज्जनता, विनम्रता, उदारता, वत्सलता आदि गुण प्रकट होते हैं, जिनसे आत्मा पवित्र होती है। दोषों-पापों का क्षय होना, गुणों का प्रकट होना

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