Book Title: Punya Paap Tattva
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 310
________________ पुण्य-पाप विषयक ज्ञातव्य तथ्य ---- ------- 261 पुण्य में महत्त्व त्याग व अनुकम्पा का है, प्रवृत्ति का नहीं। पुण्य प्रवृत्ति कम हो या अधिक, उस प्रवृत्ति से जितना राग-द्वेष गलता है वही महत्त्व की बात है। 1. पुण्य तत्त्व, 2. पुण्यास्रव, 3. पुण्य प्रवृत्ति, 4. पुण्य का अनुभाग और 5. पुण्य कर्म में अंतर है। 1. पुण्यतत्त्व है-शुभ या शुद्ध परिणाम 2. पुण्यास्रव है-शुभ योग व शुद्ध परिणामों के फलस्वरूप पुण्य की कर्म-वर्गणाओं का आना, उनका उपार्जन होना। 3. पुण्य प्रवृत्तियाँ हैं-दया, दान, सेवा, परोपकार आदि सद्प्रवृत्तियाँ 4. पुण्य का अनुभाग है-फलदान शक्ति और 5. पुण्य कर्म बंध है-पुण्यास्रव से अर्जित कर्म का कषाय के कारण से आत्मा के साथ बंध कर सत्ता में स्थित होना। पुण्य तत्त्व, पुण्यास्रव, पुण्य प्रवृत्ति, पुण्य का अनुभाग, ये सब त्याज्य व हेय नहीं हैं। केवल पुण्य का स्थिति बंध ही क्षय योग्य है, परंतु उसके क्षय के लिए कोई प्रयत्न व साधना अपेक्षित नहीं है। वह पाप कर्म की स्थिति-क्षय के साथ स्वत: क्षय हो जाता है। पुण्य का अनुपालन पाप का प्रक्षालन है। पाप प्रवृत्ति से प्राणी की प्राण शक्ति का ह्रास होता है। अत: पाप प्राणातिपात है। घाती कर्मों का उदय जीव के गुणों का घात करता है तथा इनके क्षयोपशम और क्षय से जीव के गुण प्रकट होते हैं। इसलिए चारों

Loading...

Page Navigation
1 ... 308 309 310 311 312 313 314