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--- पुण्य-पाप तत्त्व
पुण्य के अनुभाग का हेतु न तो योग है और न कषाय है, प्रत्युत कषाय की मंदता है। शुभ भाव किसी कर्म के उदय से नहीं होता है, अत: औदयिक भाव नहीं है प्रत्युत क्षायोपशमिक भाव है। शुभ भाव रूप पुण्य औदयिक भाव नहीं होने से कर्म-बंध के हेतु नहीं हैं एवं क्षायोपशमिक भाव होने से कर्म क्षय के हेतु हैं। जो हेतु पाप के क्षय के हैं वे ही पुण्य की उपलब्धि के भी हेतु हैं। पुण्य का उपार्जन (अनुभाव की वृद्धि) पुण्य कर्म के क्षय (स्थिति
का क्षय) का सूचक है। __धन-सम्पत्ति आदि बाह्य द्रव्य कर्मोदय में सहयोगी (निमित्त)
कारण हैं।