________________
पुण्य-पाप विषयक ज्ञातव्य तथ्य --
-------255
जो त्याग मुक्ति-प्राप्ति का लक्ष्य बनाकर किया जाता है अर्थात् जिसमें सांसारिक सुख भोग की आकांक्षा नहीं है वही धर्म है, उसी से उत्कृष्ट पुण्य का उपार्जन होता है। पाप के त्याग रूप शुभभाव से पुण्य का उपार्जन होता है। जैसे मद के त्याग से उच्च गोत्र का, निरतिचार व्रत पालन, सामायिक, प्रत्याख्यान आदि से तीर्थङ्कर नामकर्म का, मन-वचन-काय की कुटिलता के त्याग से शुभनामकर्म का पुण्य उपार्जन होता है। शुभास्रव (पुण्यास्रव) दोष रूप नहीं होता है। भोगेच्छा का उत्पन्न होना, भोग भोगना पाप है, अत: जो भोगी है वह पापी है और जो जितना अधिक भोगी है वह उतना ही अधिक पापी है। विषय भोगी को पुण्यात्मा मानना पापात्मा को पुण्यात्मा मानना है, जो भूल है। भूल के त्याग में ही कल्याण है। जहाँ राग है वहाँ पाप है, जहाँ अनुराग है वहाँ पुण्य है। राग में आसक्ति होती है, अनुराग में प्रमोद, प्रीति, मैत्री, वात्सल्य भाव होता है। राग में वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि पर-पदार्थों से सुख पाने की इच्छा होती है। अनुराग में प्राप्त सामग्री, सामर्थ्य, योग्यता का उपयोग दूसरों की सेवा में करने से प्रमोद होता है। राग भोगों के प्रति होता है, अनुराग गुणों के प्रति होता है। राग कर्म बंध का कारण है और अनुराग कर्म-क्षय का हेतु है। सामान्यत: सभी जीवों के पुण्य व पाप इन दोनों कर्म प्रकृतियों का
3