Book Title: Punya Paap Tattva
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 297
________________ 248 पुण्य-पाप तत्त्व है। नौका छूट जाने से नौका हेय या त्याज्य नहीं हो जाती है। वैसे ही पुण्य छूट जाने से पुण्य हेय नहीं हो जाता है। मिथ्यात्वी जीव पुण्य से ही पाप प्रकृतियों की स्थिति व अनुभाग कम करके सम्यग्दर्शन के सम्मुख होता है। मिथ्यात्वी जीव के पुण्य का अनुभाग बढ़कर जब तक चतु:स्थानिक नहीं हो जाता है तब तक वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख नहीं होता है। अत: पुण्य सम्यग्दर्शन में सहायक होता है, बाधक नहीं। कषाय रूप औदयिक भाव ही कर्म बंध का कारण है। शुभभाव किसी कर्म के उदय से नहीं होता है। अत: शुभ भाव रूप पुण्य किसी कर्म का कारण नहीं है। यदि शुभ योग और शुभ भाव को कर्म क्षय का कारण न माना जाय तो कर्म क्षय हो ही नहीं सकते। यहाँ तक कि सम्यक्त्व की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। क्योंकि अशुभ योग तो कर्म बंध का ही कारण है, उससे तो कर्म क्षय हो ही नहीं सकते। कषाय या पाप में कमी होना ही शुभभाव है, यही आत्मा का शुद्धिकरण भी है, अत: शुभ भाव आत्म-विशुद्धि का ही द्योतक है। शुभ भाव से आत्मा की शुद्धि होती है, इसलिये शुभ योग को संवर कहा है। दया, दान, करुणा, वात्सल्य, अनुकंपा आदि भाव औदयिक भाव नहीं हैं, क्योंकि ये किसी कर्म के उदय से नहीं होते हैं। अत:

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