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सम्पन्नता पुण्य का और विपन्नता पाप का परिणाम -- --------211
___ अर्थ-अविनीत के विपत्ति और विनीत के संपत्ति होती है अर्थात् अविनय से विपन्नता (दीनता-द:ख) की और विनय से संपन्नता की प्राप्ति होती है। जिसे ये बातें ज्ञात हैं, वही शिक्षा को प्राप्त होता है।।22।।
___ जो क्रोधी, पशुवत् भोगी, अभिमानी, दुर्वादी, कपटी, असंयमी, धूर्त है वह अविनीत आत्मा संसार में वैसे ही प्रवाहित होता है जैसे काष्ठ सरिता में प्रवाहित होता है।।3।।
यहाँ यह कहा गया है कि अविनीत वह है जो क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषाय का और असंयम आदि विषयों का भोगी है, दुर्गुणी है। अत: जो कषाय और विषय से रहित है, क्षमा, विनम्रता, मृदुता, सरलता, त्याग, संयम आदि गुणों का धारक है वह विनीत है।
संसार में अविनीत स्वभाव वाले नर-नारी हैं, वे निर्बल इन्द्रियों से विकल या व्याकुल होकर दु:ख भोगते देखे जाते हैं तथा सुविनीत स्वभाव वाले नर-नारी ऋद्धिवन्त, ऐश्वर्य सम्पन्न, महायश-धारी व सुखी देखे जाते हैं।।7, 9।।
विनय धर्म-वृक्ष का मूल है, इसका फल मोक्ष (बंधन और दु:खों से मुक्ति) है। ऐसे विनय से व्यक्ति को यश-कीर्ति, श्रुत आदि समस्त संपदाओं की प्राप्ति होती है तथा वह नि:शेष को प्राप्त होता है, उसे कुछ भी पाना, करना, जानना शेष नहीं रहता है।।2।।
आशय यह है कि सद्गुण ही संपदा हैं, इनसे ही समस्त सुखों की प्राप्ति होती है और दुर्गुण ही विपदा हैं, इनसे ही समस्त दु:खों की उत्पत्ति होती है। जैसा कि कहा है
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्टिय-सुप्पट्टिओ।।37।।