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पुण्य-पाप की बंध-व्युच्छित्ति :
__एक चिंतन कतिपय लोगों की ऐसी मान्यता है कि कर्म-सिद्धांत में पाप व पुण्य दोनों प्रकृतियों की बंध व्युच्छित्ति कही है। इससे यह ज्ञात होता है कि जैसे पाप हेय है, उसी प्रकार पुण्य भी हेय है। इस जिज्ञासा के समाधान के लिए किसी कार्य की निवृत्ति किस प्रकार होती है, इस विषय पर विचार करना आवश्यक है।
किसी कार्य का अंत दो प्रकार से होता है-1. निवृत्ति से-क्षीण होकर, घटकर अर्थात् अभाव रूप में और 2. पूर्णता से अर्थात् बढ़कर उससे अतीत होकर, जैसे(अ) ऋण मुक्त होना दोनों अवस्थाओं में समान होता है-1. जिसने
दिवालिया निकाल दिया और 2. जिसे देना था उसे दे दिया। बाह्य
स्थिति एक होने पर भी ये दोनों बातें परस्पर विरोधी हैं। (आ) एम.ए. पढ़ने के कार्य का अभाव दो व्यक्तियों के होता है। 1.
एम.ए. नहीं पढ़ने वाले के 2. एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने
वाले के। (इ) देह का अभाव व व्युच्छित्ति देहांत होने पर अथवा देहातीत होने