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शुभ योग (सद्प्रवृत्ति) से कर्म क्षय होते हैं ------ की कमी होना शुद्धोपयोग है और इसी का क्रियात्मक रूप शुभ प्रवृत्ति, शुभ योग या शुभभाव है। यह शुभप्रवृत्ति या शुभयोग आत्मशुद्धि का प्रतीक होने से धर्मरूप है और आत्म-पवित्रता का द्योतक होने से पुण्य रूप है। इस रूप में शुभ भाव, शुभ योग, धर्म एवं पुण्य समानार्थक हैं, समानान्तर या विरोधी नहीं हैं।
दया, दान, करुणा, वात्सल्य और मैत्री रूप भावों की विशुद्धि के प्रभाव से कर्मक्षय कैसे होते हैं, यहाँ इसी पर विचार किया जा रहा है
कर्मसिद्धांत का यह नियम है कि कषाय में कमी होने से शुभ भाव होते हैं, जिनसे आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की सत्ता में स्थित समस्त कर्म प्रकृतियों के स्थितिबंध का नियम से अपवर्तन होता है अर्थात् उनके पूर्वबद्ध स्थिति बंध में अवश्य ही कमी होती है। साथ ही सात कर्मों की समस्त पाप प्रकृतियों के अनुभाग बंध का भी नियम से अपकर्षण होता है अर्थात् पूर्वबद्ध पाप कर्मों के अनुभाग में कमी होती है। इस प्रकार शुभभाव से पूर्व में बँधे हुए पाप कर्मों की स्थिति और अनुभाग में न्यूनता आने रूप कर्मों का क्षय होता है, जो जीवन के लिए कल्याणकारी व उपादेय है। आगे शुभभाव के प्रभाव से प्रत्येक कर्म का क्षय कैसे होता है, इस पर विचार किया जा रहा है।
___ कषाय में कमी या विशुद्धि रूप शुभ भावों से मोह में, मोहनीय कर्म में कमी आती है, जिससे आचरण में निर्मलता आती है अर्थात् चारित्र गुण की वृद्धि होती है एवं विकल्पों में कमी आती है, निर्विकल्पता में वृद्धि होती है और समता पुष्ट होती है। निर्विकल्पता की वृद्धि व समता की पुष्टि से दर्शन गुण की वृद्धि व विकास होता है जिससे दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है।