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बंध का मुख्य कारण कषाय है, योग नहीं ------
शंका-पूर्वसंचित कर्म का क्षय किस कारण से होता है?
समाधान-कर्म की स्थिति का क्षय हो जाने से उस कर्म का क्षय होता है।
शका-स्थिति का विच्छेद किस कारण से होता है?
समाधान-कषाय के क्षय होने से स्थिति का विच्छेद (घात) होता है अर्थात् नवीन कर्मों में स्थिति नहीं पड़ती है और कर्मों की पुरातन स्थिति का विच्छेद (घात) हो जाता है। कहा भी है
योग के निमित्त से कर्मों का आस्रव (अर्जन) होता है और कषाय के निमित्त से कर्मों में स्थिति पड़ती है। इसलिए योग और कषाय का अभाव हो जाने पर बंध और स्थिति का अभाव हो जाता है और उससे सत्ता में विद्यमान कर्मों की निर्जरा होती है।
जैसा कि आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने कहा है
जइ वि एवमुवदिसंति तित्थयरा तोवि ण तेसिं कम्मबंधो अत्थि। तत्थ मिच्छत्तासंजमकसायपच्चयाभावेण वेयणीयवज्जासेसकम्माणं बंधाभावदो। वेयणीयस्स वि ण द्विदिअणुभागबंधा अत्थि, तत्थ कसायपच्चयाभावादो। जोगो अत्थि ति ण तत्थ पयडिपदेसबंधाणमत्थित्तं वोत्तुं सक्किज्जदे? ट्ठिदि-बंधेण विणा उदयसरूवेण आगच्छमाणाणं पदेसाणमुवयारेण बंधववएसुवदेसादो। ण च जिणेसु देस-सयलधम्मोवदेसेण अज्जियकम्मसंचिओवि अत्थि उदयसरूवकम्मागमादोअसंखेज्जगुणाए सेढीए पुव्वसंचियकम्मणिज्जरं पडिसमयं करेंतेसु कम्म-संचयाणुववतीदो। -कसायपाहुड, प्रथम पुस्तक, पृ. 92-93
अर्थात् यद्यपि तीर्थङ्कर श्रावकों और मुनियों को उपदेश देते हैं तो भी उनके कर्मबंध नहीं होता है, क्योंकि जिनदेव के तेरहवें गुणस्थान में कर्म-बंध के कारणभूत मिथ्यात्व, असंयम और कषाय का अभाव हो जाने