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बंध का मुख्य कारण कषाय है,
योग नहीं
जैन-दर्शन में योग और कषाय ये दो कर्म-बंध के कारण कहे गये हैं। योग से कर्मों का प्रकृति और प्रदेश बंध होता है तथा कषाय से स्थिति
और अनुभाग बंध होता है, ऐसा कहा गया है, सो यथार्थ ही है। कारण कि योगों की प्रवृत्ति से कर्मों की रचना (सर्जन) और कषाय से कर्मों का बंध होता है।
कर्म सिद्धांत का यह नियम है कि प्रवृत्ति के बिना कर्मों या दलिकों का अर्जन नहीं हो सकता और कर्मों का अर्जन ही नहीं हो तो बंध किसका होगा। अत: योगों के अभाव में बंध का अभाव होगा। इस प्रकार कर्म-बंध की मौलिक सामग्री का निर्माण योगों से होता है परंतु कर्म दलिकों (प्रदेशों) का अर्जन होना और उसका बंध होना ये दोनों एक बात नहीं है। वीतराग केवली के योगों की प्रवृत्ति है, अत: कर्म-दलिकों का अर्जन तो होता ही रहता है, परंतु कर्म-बंध नहीं होता है।
विश्व में कर्म-वर्गणा सर्वत्र विद्यमान है और आत्माएँ भी सर्वत्र विद्यमान हैं अर्थात् जहाँ कर्म-वर्गणा विद्यमान है वहाँ आत्मा भी विद्यमान है, फिर भी उन कर्म-वर्गणाओं का आत्मा के साथ बंध नहीं होता है, क्योंकि उनका आत्मा के साथ संबंध स्थापित नहीं हुआ है। कर्मों का आत्मा