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पुण्य-पाप तत्त्व
सारांश यह है कि कषाय में कमी होना क्षायोपशमिक तथा क्षायिक भाव है और कम कषाय या मंद कषाय औदयिक भाव है, जो कर्मबंध का हेतु है। अतः कषाय में कमी होना या कषाय की मंदता शुभ है और कम कषाय या मंद कषाय अशुभ है। शुभ भाव, कषाय की मंदता पुण्य कर्म के प्रकृति, प्रदेश एवं अनुभाग के आस्रव में हेतु है तथा पुण्य के बंध (स्थिति-बंध) के क्षय में भी हेतु है एवं पाप प्रकृतियों के प्रकृति, प्रदेश व अनुभाग के आस्रव के निरोध एवं पापकर्म के चारों प्रकार के बंध के क्षय का हेतु है और मंद कषाय पाप का, पापास्रव का उपार्जन करने वाला एवं पापकर्म के चारों प्रकार के बंध का हेतु है।
कषाय की मंदता और मंद कषाय में उतना ही अंतर है जितना रोग की कमी और कम रोग में अंतर है। रोग की कमी अच्छी बात है, शुभ है, परंतु रोग कम हो या अधिक रोग का होना तो बुरा ही है।