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अहिंसा, पुण्य और धर्म
पुण्य की व्याख्या पहले कर आए हैं, यहाँ धर्म की कतिपय परिभाषाएँ दे रहे हैं
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चत्तारि धम्मदारा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मदवे
धर्म के चार द्वार हैं-क्षमा, संतोष, सरलता और मृदुता (नम्रता ) ।
-स्थानांग 4.4
समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए
आर्य महानुभावों ने समभाव में धर्म कहा है।
धम्मो मंगलमुक्किट्टं, अहिंसा संजमो तवो। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। वह अहिंसा, संयम एवं तप रूप है।
-दशवैकालिक 1.1
धम्मस्स विणओ मूलं ।
धर्म का मूल विनय है।
धम्मो वत्थुसहावो।
-आचारांग 1.8.3
वस्तु का स्वभाव ही धर्म है।
-दशवैकालिक 9.2.2
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा 478
असुहादो विणिवत्ति, सुहे पवित्ति य जाण चारित्तं । अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति को चारित्र जानो ।
- द्रव्यसंग्रह, 45