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अहिंसा, पुण्य और धर्म ------ शक्ति का विकास होता है। फलत: कर्म-सिद्धांत या नैसर्गिक नियमानुसार तदनुरूप द्रव्येन्द्रियों का अर्थात् इन्द्रिय, मन, बुद्धि रूप ज्ञान-दर्शन की अभिव्यक्ति के साधनों का विकास होता है अर्थात् ये विकसित रूप में प्राप्त होते हैं तथा सद्प्रवृत्तियों से जिन प्राणियों व व्यक्तियों का हित हुआ है उनसे आदर-सत्कार, सम्मान व भौतिक सामग्री भेंट रूप में मिलती है। इस प्रकार क्रियात्मक रूप का संबंध भौतिक जगत् से होने से उसका फल भी भौतिक संपत्तियों या विभूतियों के रूप में मिलता है।
ये भौतिक विभूतियाँ या उपलब्धियाँ साधन-सामग्री हैं। यह साधन सामग्री न भली है और न बुरी है। इसीलिए कर्म-सिद्धांत में इनकी उपलब्धि को अघाती कर्म का फल कहा है। अघाती का अर्थ है चैतन्य गुण का किसी भी अंश में घात करने में कारणभूत नहीं होना है। इस साधन-सामग्री का सदुपयोग प्राणी के लिए कल्याणकारी एवं मंगलकारी होता है और दुरुपयोग पतनकारी व अमंगलकारी (दु:ख रूप) होता है।
___ उपलब्ध भौतिक सामग्री का सदुपयोग है-सर्व हितकारी प्रवृत्ति करना। इससे राग या सुखासक्ति घटती है और आत्मा का कल्याण होता है, अहित लेशमात्र भी नहीं होता है। उपलब्ध भौतिक सामग्री का दुरुपयोग है उसके द्वारा विषय भोग भोगना, हिंसा, चोरी आदि पाप करना। विषयभोग से आत्मा में जड़ता, पराधीनता, असमर्थता, आकुलता, व्याकुलता आदि दोषों व दु:खों की उत्पत्ति होती है, जो अनिष्ट रूप है और हिंसा, लूटपाट, संग्रह आदि पाप युद्ध, संघर्ष, कलह, अशांति, भय, अंगभंग, मृत्यु आदि दु:खों के हेतु होते हैं। इस प्रकार प्राप्त साधन-सामग्री का दुरुपयोग पतनकारी, अमंगलकारी व अकल्याणकारी होता है। अत: उपलब्ध भौतिक साधन-सामग्री प्राणी को अपने सुख-भोग के लिए नहीं, वरन् विश्व हित