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----- पुण्य-पाप तत्त्व होता है। इसके विपरीत भौतिक विकास के दुरुपयोग रूप भोग-प्रवृत्ति से आत्मिक अध:पतन होता है। अत: महत्त्व पुण्य कर्म से प्राप्त भौतिक विकास के सदुपयोग का है। इस प्रकार भौतिक विकास आध्यात्मिक विकास का सहयोगी कारण हो सकता है।
भौतिक विकास है इन्द्रिय, मन, वचन, काया आदि की प्राण शक्तियों का विकास होना। प्राण शक्ति का विकास ही प्राणी का विकास है। पुण्य के सदुपयोग से शुभ आयु का, उच्चगोत्र से उदात्तभावों का, शुभ वेदनीय से संवेदनशीलता का, शुभ नामकर्म से पाँच इन्द्रिय, मन, वचन, काय रूप करणों का निर्माण एवं इनकी शक्ति का विकास होता है।