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क्षयोपशमादि भाव, पुण्य और धर्म
जीव के शुभाशुभ परिणाम या भाव ही कर्म-बंध के एवं मुक्ति के हेतु हैं। भाव पाँच हैं-औदयिक, क्षायिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक। इन भावों में से कौनसे भाव कर्म बंध के हेतु हैं और कौनसे भाव कर्म क्षय के या मोक्ष के हेतु हैं, इस संबंध में श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों को यह गाथा मान्य है
ओदइया बंधयरा उवसमखयमिस्सया य मोक्खयरा। भावो दु पारिणामिओ करणो य वज्जिओ होइ।।
अर्थ-औदयिक भावों से कर्म बंध होता है, औपशमिक, क्षायिक और मिश्र (क्षायोपशमिक) भावों से मोक्ष होता है और पारिणामिक भाव बंध और मोक्ष इन दोनों का कारण नहीं है।
इस गाथा में औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीनों भावों को मोक्ष का हेतु कहा है। जो मोक्ष का हेतु है, वह धर्म होता है। अत: इससे यह फलित होता है कि जैसे औपशमिक भाव और क्षायिक भाव धर्मरूप हैं, वैसे ही क्षायोपशमिक भाव भी धर्म हैं। कारण कि क्षायोपशमिक भाव स्वभाव है क्योंकि वह किसी कर्म के उदय से नहीं होता है, अपितु कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के क्षय व उपशम से होता है।