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पुण्य का उपार्जन कषाय की कमी से और पाप का उपार्जन कषाय की वृद्धि से --- 89
__... 'कहं णं भंते! जीवाणं असायावेयणिज्जा कम्मा कज्जति? गोयमा! पर-दुक्खणयाए, परसोयणयाए, परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, पर परियावणयाए, बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणयाए, सोयणयाए जाव परियावणयाए, एवं खलु गोयमा! जीवाणं असायावेयणिज्जा कम्मा कज्जति।।
-भगवती सूत्र शतक 7, उद्देशक 6 प्रश्न-हे भगवन्! जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन किस प्रकार करते हैं?
उत्तर-हे गौतम! प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों पर अनुकंपा करने से, बहुत से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दु:ख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से अथवा शोक दूर करने से, उन्हें खेदित व पीड़ित न करने व न पीटने से तथा उनकी पीड़ा-परिताप दूर करने से जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करते हैं।
प्रश्न-हे भगवन्! जीव असातावेदनीय कर्म का उपार्जन किस प्रकार करते हैं?
उत्तर-हे गौतम! दूसरे जीवों को 1. दु:ख देने से 2. शोक उत्पन्न करने से 3. खेद उत्पन्न करने से 4. पीड़ित करने से 5. पीटने से 6. परिताप उत्पन्न करने से 7. बहुत से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख देने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् परिताप उत्पन्न करने से जीव असाता वेदनीय कर्म का उपार्जन करते हैं।
भगवती सूत्र के उपर्युक्त उद्धरण में सातावेदनीय का हेतु अनुकंपा को एवं असातावेदनीय का हेतु क्रूरता को कहा है। अनुकंपा का हेतु क्रोध कषाय की क्षीणता है जैसा कि कहा है