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पुण्य का उपार्जन कषाय की कमी से और पाप का उपार्जन कषाय की वृद्धि से --- 93
अर्थ-हे गौतम! महारंभ, महापरिग्रह, मांसाहार एवं पंचेन्द्रिय जीवों के वध से नरक आयु का बंध होता है।
बहुत आरंभ, परिग्रह आदि तृष्णा या लोभ से ही होते हैं। अत: नरकायु के बंध का मुख्य हेतु लोभ कषाय का उदय ही है। तात्पर्य यह है कि लोभ कषाय की क्षीणता व कमी से मनुष्य और देव संबंधी शुभ आयु का और लोभकषाय की वृद्धि से नरक की अशुभ आयु का बंध होता है। नाम कर्म
नाम कर्म दो प्रकार का है-शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म। अशुभ नाम कर्म का अर्थात् नाम कर्म की पुण्य प्रकृतियों का उपार्जन माया कषाय की क्षीणता से होता है एवं अशुभ नाम कर्म का अर्थात् नाम कर्म की पाप प्रकृतियों का अर्जन एवं बंध माया कषाय के उदय से होता है, यथा
शुभनामकर्म का उपार्जन
मायमज्जवभावेण
-दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 8, गाथा 39 माया-विजएणं अज्जवं जणयइ।
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, सूत्र 69 अज्जवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? अज्जवयाए णं काउज्जुययं, भावुज्जुययं, भासुज्जुययं, अविसंवायणं जणयइ। अविसंवायण-संपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, सूत्र 48
गोयमा! काउज्जुययाए, भावुज्जुययाए, भासुज्जुययाए, अविसंवायण-जोगेणं सुभनामकम्मासरीर-जाव पओगबंधे। -भगवती सूत्र 8.9.84 योगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः। विपरीतं शुभस्य।
-तत्त्वार्थसूत्र, अध्ययन 6, सूत्र 21-22