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कषाय की मंदता पुण्य है,
मंद कषाय पाप है
अशुभभाव, अशुभयोग, दुष्प्रवृत्ति, संक्लेश, अशुद्ध उपयोग ये सब प्राय: समानार्थक एवं पाप के पर्यायवाची हैं। कारण कि ये सब कषाय वृद्धि के द्योतक हैं। इनसे आत्मा का पतन होता है और कर्मों का बंध होता है। इसके विपरीत शुभभाव, शुभयोग, सद्प्रवृत्ति, विशुद्धि, शुद्धोपयोग, क्षायोपशमिक भाव ये सब समानार्थक हैं एवं पुण्य के पर्यायवाची हैं। कारण कि ये सब कषाय की कमी के द्योतक हैं। इनसे आत्मा पवित्र होती है और कर्मों का क्षय होता है। कर्मबंध एवं कर्मक्षय होने की प्रक्रिया इस प्रकार है
कर्म-बंध चार प्रकार का है-1. प्रकृति बंध, 2. स्थिति बंध, 3. अनुभाग बंध और 4. प्रदेश बंध। इन चार प्रकार के बंधनों में प्रदेश बंध का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। कारण कि प्रदेश बंध का उदय व क्षय कम हो या अधिक, इससे कर्म की फलदान शक्ति ‘अनुभाग' में कोई अंतर नहीं पड़ता है। अत: मुख्यता अनुभाग एवं स्थिति बंध की है। स्थिति बंध होने से ही कर्म सत्ता (सत्त्व) को प्राप्त होते हैं व टिकते हैं और अपना फल देते हैं। स्थिति बंध के अभाव में कर्म बिना फल दिये ऐसे ही खिर (क्षय) जाते हैं जैसे सूखी बालू रेत को दीवार पर फेंकने से वह रेत दीवार को छूकर खिर