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----- पुण्य-पाप तत्त्व पड़ेगा, सो ऐसा उपयुक्त नहीं है। एक समय में शुभ योग या अशुभ योग में से एक ही योग माना गया है और योग का अभाव भी नहीं माना गया है। अत: शुभ योग रूप पुण्यास्रव और अशुभ योग रूप पापास्रव का संबंध क्रमश: शुभ परिणाम (भाव) और अशुभ परिणाम (भाव) से है। पुण्यपाप की प्रकृतियों के बंध से नहीं है तथा शुभ परिणाम पुण्य तत्त्व है और अशुभ परिणाम पाप तत्त्व है। अत: पुण्य-पाप तत्त्व का संबंध पुण्य-पाप की प्रकृतियों के बंध से नहीं है। इस प्रकार पुण्य तत्त्व रूप शुभ परिणाम वही है जिससे रागादि दोषों में कमी हो अर्थात् आत्मा पवित्र हो, आत्मविशुद्धि हो तथा पाप तत्त्व रूप अशुभ परिणाम वही है जिससे दोषों में वृद्धि हो अर्थात् आत्मा का पतन हो।
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