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________________ (1) पुण्य तत्त्व : स्वरूप और महत्त्व ‘पुनाति आत्मानम् इति पुण्यम्' अर्थात् जिससे आत्मा पवित्र हो वह पुण्य है। यह परिभाषा प्राचीन काल से सभी जैनाचार्यों को मान्य है, यथा पुण्णं पूदपवित्ता पसत्थसिवभद्दखे मकल्लाणा । सुहसोक्खादी सव्वे णिद्दिट्ठा मंगलस्स पज्जाया ।। अर्थ - - पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, भद्र, क्षेम, कल्याण, शुभ, सौख्य और मंगल, ये सब समानार्थक पर्यायवाची शब्द कहे गये हैं। -तिलोयपण्णत्ति, गाथा 8 पुनात्यात्मानं पूयतेऽनेनेति वा पुण्यम्। अर्थ-जो आत्मा को पवित्र करता है या जिस (कार्य) से आत्मा पवित्र होती है, वह पुण्य है। -सर्वार्थसिद्धि 6.3 ‘पवित्रीकरोत्यात्मानमिति पुण्यं शुभं कर्म ।' अर्थ-जो आत्मा को पवित्र करता है वह शुभ कर्म पुण्य है। -स्थानांग-अभयदेवसूरिवृत्ति
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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