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--- पुण्य-पाप तत्त्व सहजता, स्वाभाविकता न होकर वक्रता-कृत्रिमता-कुटिलता होना भी माया है। इससे मित्रता का विच्छेद व वैरभाव की उत्पत्ति होती है।
(9) लोभ-प्रलोभन वृत्ति का होना लोभ है। अप्राप्त को प्राप्त करने की कामना, प्राप्त को बनाये रखना, संचय वृत्ति, लाभ की इच्छा आदि लोभ के अनेक प्रकार हैं। सुख का प्रलोभन भी लोभ है। लोभवृत्ति से अभाव का अनुभव होता है जो दरिद्रता का द्योतक है।
(10) राग-किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थिति आदि की अनुकूलता के प्रति आकर्षण होना राग है। पर पदार्थों के प्रति आसक्ति, विषय-सुख की अभिलाषा भी राग ही है। राग आग है जो आत्मा को सदैव प्रज्वलित करती रहती है। राग ठंडी आग है।
(11) द्वेष-प्रतिकूलता के प्रति अरुचि होना द्वेष है। वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति की प्रतिकूलता में उसके प्रति दुर्भाव होना, उसका विनाश चाहना, उसे बुरा समझना, उन पर आक्रोश होना, बुरा जानना आदि द्वेष के अनेक रूप हैं।
(12) कलह-झगड़ा करना कलह है। कलह अपने लिए संतापकारी एवं दूसरों के लिए परितापकारी और सभी के लिए अशांतिकारी होता है। असहिष्णुता, प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, द्वन्द्व आदि इसके अनेक रूप हैं।
___(13) अभ्याख्यान-दूसरों पर झूठा आरोप लगाना अभ्याख्यान है। किसी पर कलंक लगाना, बदनाम करना, नीचा दिखाना, दोषारोपण करना आदि इसके अनेक रूप हैं।
(14) पैशुन्य-चुगली खाना पैशुन्य है। इधर की बात उधर करना, दो व्यक्तियों को लड़ा देना, परस्पर भिड़ा देना आदि पैशुन्य के अनेक रूप हैं।
(15) परपरिवाद-दूसरों की निंदा करना परपरिवाद है। किसी की