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प्रस्तुत प्रश्न
प्रश्न- - प्रतिनिधि-शासक ही नैतिक बल-युक्त शासक कहा जा सकता है, क्या यह ठीक है ?
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उत्तर - होना तो चाहिए, पर आज के दिन ठीक ऐसा है नहीं । वोटों की गिनती द्वारा जो प्रतिनिधि चुने जानेकी पद्धति है, क्या उसमें सच्चे प्रतिनिधि चुने जाने अथवा किसीके सच्चे प्रतिनिधि बनने की संभावना भी रहती है ? — नहीं रहती । ऐसे प्रतिनिधि भी देखने में आते हैं जिन्हें खबर नहीं कि वे कहाँके प्रतिनिधि हैं और जहाँके प्रतिनिधि हैं, उन्हें खबर नहीं कि हमारा कोई प्रतिनिधि भी है । इसलिए अगर प्रतिनिधि' शब्द से वोट- गणनावाले प्रतिनिधिका भाव आता है, तो कहना होगा कि नैतिक पुरुष प्रतिनिधि पुरुष हो अथवा नहीं भी हो । अधिक संभावना उसके प्रतिनिधि नहीं होने की ही है । प्रश्न - अधिक संभावना उसके प्रतिनिधि नहीं होनेकी ही क्यों हैं ?
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उत्तर - ऐसा इस लिए कि वोट स्वतंत्र नहीं होती है, स्वतंत्रता से नहीं दी जाती है | वातावरणमें दल-प्रचार और दल- आंतकका ऐसा विकार भरा रहता है कि वह वोट खुले मनकी होने ही नहीं पाती । फिर रिवाज प्रतिनिधियों के ' खड़े होने' या 'खड़े किये जाने' का है । खड़े होने की तरफ आँख उसकी अधिक लगी होती है जो महत्त्वाकाक्षी है । और महत्त्वाकाक्षा अनैतिक है । इससे आज कलकी चुनाव-प्रथा (Election system ) नैतिकताको बढ़ाती हुई नहीं देखने में आती ।