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औद्योगिक विकास : मजूर
और मालिक
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घर में न घुसने देने की बात मुझको कहनी चाहिए। नहीं, मैं वह बात नहीं कह सकता । हाँ, मशीन में जिसे वैसा आकर्षण है वह उसका त्याग कर दे । लेकिन वैसे आकर्षणकी जरूरत नहीं है, इसलिए उससे घबराने की भी ज़रूरत नहीं है 1 अतः मशीनमात्र में निषेध भाव रखनेका मैं समर्थक नहीं हूँ । आखिर क्या मानवबुद्धि और प्रतिभाका चमत्कार यंत्र - निर्माण में नहीं दीखता ? त्याज्य अहंकार है, मानव-बुद्धिका फल तो त्याज्य नहीं है । अतः जहाँ अहंकार फूला हुआ बैठा है और अपनेको महायंत्रोंसे घेरकर सुरक्षित बनाये हुए है, वहाँ तो निर्भयता के साथ बढ़ना होगा और उस झूठे दर्पको चुनौती दे देनी होगी । पर मानव - मेधाका फल तो अमर है न उस फलके प्रति हमारी आदर भावना ही रहेगी ।
प्रश्न -- आपने कहा कि जिन उद्योगोंमें मज़दूर और मालिकका संबंध आ जाता है, वे निषिद्ध हैं । क्या कुछ उद्योग ऐसे न होंगे जो व्यक्तिगत रूपसे चल ही नहीं सकते, लेकिन जिनका चलना यदि उचित नहीं तो जरूरी तो है ही । उदाहरणार्थ बिजलीका उद्योग । ऐसे उद्योगों में तो मालिक मज़दूरका संबंध जरूर आयगा । अगर यह संबंध निषिद्ध है तो इन उद्योगोंको बंद कैसे किया जाय ? और अगर ऐसे उद्योग चलते रहें तो यह निषिद्ध संबंध निभाया कैसे जाय ? क्या इस तत्त्वकी उपस्थिति अंतमें घातक न होगी ?
उत्तर- इस वक्त अगर सब नहीं तो अधिकतर उद्योग ऐसे हैं जिनमें मालिक मजदूर-संबंध के बिना काम नहीं चलता । परिस्थितिको देखते हुए यह अनिवार्य मालूम होता है कि वे उद्योग चलें । बेशक कह देने भर से वे उद्योग सुधर या गिर नहीं सकते । भी संदिग्ध है कि आज उन सबको एक चोटमें गिराना सम्भव भी हो, तो उचित होगा या नहीं । कपड़े की मिलों को गिरा देने से तुरन्त तो यही परिणाम होगा न कि कपड़े की कभी पड़ जायगी और अपराधवृत्तिको उत्तेजना मिलने की सम्भावना उससे बढ़ेगी । या विदेशी लोगोंकी आ बनेगी | इसलिए उपाय यह नहीं है कि आदर्शको एक सैद्धान्तिक घोष बनाकर इन्कलाबसे कुछ कमकी बात ही न की जाय । यह अधैर्यका परिचायक होगा । कुछ भी करने के लिए धीरज रखना जरूरी है ।
फिर क्या किया जाय, यह प्रश्न है । तो यह तो किया ही जा सकता है कि 1
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