Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 248
________________ २३२ प्रस्तुत प्रश्न हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि मुष्टि बल और आतंकके शासनकी जगह हमें सहयोग और सद्विश्वास बढ़ानेवाला नैतिक शासन चाहिए, तो उसीमेंसे यह निकल आता है कि हमें आर्थिक संघटनको अब अधिकाधिक स्वावलंबनसिद्धांतके अनुकूल बनाना चाहिए । उसीको कहिए आर्थिक डिसेण्ट्रलाइज़ेशन । प्रश्न - तो क्या मैं यह कहूँ कि वर्तमान अशांति निवारण करनेका एक-मात्र उपाय आप डिसेण्ट्रलाइज़ेशनको ही मानते हैं ? उत्तर--एक-मात्रमे क्या मतलब ? अशांतिक सवाल को चारों ही ओरसे हल करना है न ? हाँ, आर्थिक विषमताक कारण जो अशांति है, उसको दूर करनेका उपाय तो यह मालूम होता है । लेकिन इस केंद्रविकीरणको किसी आर्थिक प्रोग्रामका घोष (=Cry) बनानेका आशय नहीं है । मैं अपनी जरूरतें कम करूँ और जितना बने उन्हें आसपाससे पूरी कर लेनेका ख्याल करूँ, इसीमें उस इष्टका आरम्भ है । हाँ, यह मैं मानता हूँ कि शाब्दिक प्रयत्नासे,—अर्थात् लिखनेपढ़ने-बोलनेसे कार्मिक प्रयत्न सच्चे सामाजिक अहिंसक वातावरणको लानमें ज्यादा सफलीभूत होंगे। अखबार चाह कम हो जाय, चरखे अधिक होने चाहिए ।

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