Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 256
________________ २४० प्रस्तुत प्रश्न नहीं, स्वार्थी बनकर उद्देश्य-साधन नहीं हो सकता। प्रश्न-क्या संसारमें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो माया, मोह, अविद्या और श्रद्धा-हीनतासे वचा हो? उत्तर-कोई अधिक बन्धनमें है, कोई कम बन्धनमें है । पूर्ण मुक्त आत्मा देह धारण ही क्यों करेगा ? | प्रश्न-तो क्या विश्व भरमें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो जीवनके उद्देश्यको जानता हो ? उत्तर-मैं विश्व-भरके कितने से व्यक्तियोंको जानता हूँ ? बहुत थोड़े व्यक्तियों को जानता हूँ। मेरी प्रतीति है कि कम-अधिक सुलगता हुआ उस उद्देश्यका ज्ञान सभीमें निहित है । सबमें आत्मा है । जिनमें वह दहककर प्रज्वलित और ज्योतिर्मय हो गया है वही तो महापुरुष हैं, और वंदनीय बन गये हैं। प्रश्न-क्या इन महापुरुषों में जो वंदनीय बन गये हैं स्वार्थ नहीं था ? यदि था तो उनका उद्देश्य-साधन किस प्रकार हुआ ? उत्तर-स्वार्थ यदि होगा भी तो इतना मूक्ष्म कि नगण्य । प्रश्न-'आर्ट' क्या है। उत्तर-यह पुराना सवाल है । इसमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए। वह यह कि 'आर्ट' शब्दको लेकर हम कोई झमेला तो नहीं खड़ा करना चाहते हैं । आदमीकी आदत हो गई है कि नये शब्द बनाता है और उनके सहारे जीवन में सुलझन नहीं, बल्कि उलझन बढ़ा लेता है। 'आर्ट' शब्दपर हम चकरायें नहीं । उसको लेकर पोथेपर पोथे लिखे जाते हैं और वे विभ्रममें डाल सकते हैं । इसलिए 'आर्ट' शब्दके पीछे अगर हमारे मनकी कोई भावना न हो तो उस शब्दका बहिष्कार करके ही चलना अच्छा है। 'आर्ट' अधिकांशमें ढकोसला है । मेरा मतलब बादवाले आर्टसे है। वह मानवके आत्म-गर्व और आत्म-प्रवंचनापर खड़ा होता है। __यों, सचाईकी ओर हम चलें तो आर्ट चित्तकी उस सूक्ष्म वृत्तिके उत्तरमें पैदा होता है जो प्रयोजन नहीं, मिलन खोजती है । मानवमें शाश्वतके, सनातनके,

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