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प्रस्तुत प्रश्न
महा-भयंकर फासिस्ट वृत्तिके लोग रहे हैं क्योंकि यह मान्यता बना दी गई थी कि वे जो कुछ करें सब ठीक है, वही धर्म है।
उत्तर-मोहम्मदसाहबकी खिलाफत संस्था, आरंभिक ईसाइयतका पोपशासन, बुद्धकी अनुपेरणासे प्रभावित सर्वप्रिय अशोक सम्राट् , अथवा कनफ्यूशियस जैसे लोग और आजके गाँधी बहुत कुछ इसके उदाहरण हैं । क्या इनको फासिस्ट कहने के लिए आप मुझे कहेंगे? नहीं। उनकी शासन-पद्धतिको फासिज्म कहना अन्याय और अज्ञान मालूम होता है।
प्रश्न-महात्मा गाँधीके विषयमें क्या आप यह मानते हैं कि वे राजनीतिक मामलोंमें जो कुछ कहते हैं, अक्षर अक्षर सच कहते हैं ?
उत्तर-हाँ, मैं मानता हूँ कि अपनी ओरसे वे सच ही कहते हैं ।
प्रश्न-दीखता तो यह है कि वे स्टेटकी हिंसाको ठीक नहीं समझते, फिर भी वे अहिंसावादी मंत्रियोंको आशीर्वाद देते हैं जिन्हें मंत्रिपदपर पहुँचकर हिंसा करनी पड़ती है। क्या यह सचाई है ?
उत्तर-हिंसा अगर एक फॅकसे मिट सकती होती तो प्रश्न ही न था। अहिंसाकी ओर क्रम क्रमसे उन्नति होगी। आशीर्वाद यदि मंत्रियोंको दिया जाता है तो इसलिए नहीं कि वे हिंसा करें, बल्कि इसलिए दिया जाता है कि वे हिंसाको कम करें और अहिंसाकी ओर बढ़े। ___ आदर्शको अगर व्यवहार्य बनाना है तो व्यवहारसे इन्कार करनेसे नहीं बनेगा। व्यवहारको व्यवहार, यानी आदर्शसे कुछ हटा हुआ, मानकर ही स्वीकार करना होगा, तभी उसे उन्नत करने की संभावना होगी । व्यवहारकी मर्यादाओंको बिना स्वीकार किये मर्यादाओंके बंधनको अतिक्रम करने का अवसर भी नहीं आयगा । मानव-कर्म आदर्श और संभवका मेल है । चाहो तो कह दो कि वह समझौता है। जो अमुक परिस्थितियों में संभव है, आदर्श उसीको स्वीकार कर अपनेको व्यक्त करता है । परिस्थितिकी मर्यादा व्यवहारकी मर्यादा तो निश्चित करती है, पर आदर्शको वह नहीं छूती।।
इसी दृष्टिसे संसारके कार्य-कलापको देखना चाहिए । हम साँस लेते हैं, इसमें हिंसा है । तो क्या मर जायें ? लेकिन इस तरह आत्मघात क्या हिंसा न होगी ? उपाय यही है कि जीनेमें जितनी अनिवार्य हिंसा गर्भित है, उसको झेल लें