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प्रस्तुत प्रश्न
मैं अपने विश्वासोंका अपने जीवन में पालन करूँ। जो निषिद्ध है उसका निवारण नहीं कर सकता तो उसके साथ असहयोग तो कर ही सकता हूँ । मिथ्याके प्रति असहयोगका मतलब है, जो मैं सत्य मानता हूँ उसके प्रति कटिबद्धता । इससे मैं उद्योग विकासकी जो दिशा ठीक समझू उस ओर बढ़ चलूँ, जिसका यहाँ अर्थ है कि मैं हाथका उद्योग आरम्भ कर दूँ । जब स्वयं ऐसा करूँ तब ओरों को भी उसके लिए प्रेरित करूँ । जिसको सर्वोदय =Decentralization of
Power ) कहा जाय, वह कानून के जोरसे नहीं होनेवाला । वह तो शिक्षासंस्कार के बलपर धीरे धीरे होगा । सच बात यह है कि श्रद्धा अडिग चाहिए और साथ कर्म-तत्परता भी हो ।