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प्रस्तुत प्रश्न
दूसरेको विघातक बतला दे सके ? तो मैं समझता हूँ कि इस प्रश्नका उत्तर यह बन सकता है कि जिसके कारण मानव-संबंध बिगड़ें, जिससे दो व्यक्तियों के बीच मालिक और मजदूरका संबंध बनता हो, वही निषिद्ध है । एक मालिक हो दूसरा मज दूर हो, यह स्थिति समाजके लिए विषम है और इसमें विस्फोटका बीज है।
कहा जा सकेगा कि उद्योगोंपरसे व्यक्तिगत प्रभुत्वको उठा देनेसे, यानी उनको राष्ट्रगत ( nationalize) या समाजगत ( =socialize) कर देनेसे तो यह आशंका मिट जाती है। किन्तु एसा ऊपरसे होता दीखता हो, फिर भी पूरी तौरसे और असल में वह विषमता इससे नहीं मिटती । क्या कि उद्योगांके राष्ट्रगत (=nationalize ) कर देनेपर भी दूसरा कोई मुल्क तो जरूर रहेगा जिसके लोगोंको इस उद्योगका दास बनाया जायगा । जहाँसे कच्चा माल आयगा, और जहाँ पक्का माल खपेगा, इन उद्योगोंके संबंध उन देशोंकी स्थिति तो शाषितकी ही होगी न ?
फिर जैसा ऊपर कहा, उद्योगोंके एक जगह केन्द्रित हो जानेसे भौतिक अधिकार केन्द्रित हो जाता है और वैसी केन्द्रित प्रभुताका नाम ही डिक्टेटरशिप है । जहाँ मशीन लोगोंको मजदूर बनानेके काममें लाई जाती है वहाँ वह किसी दूसरेको मालिक भी बनाती है । सैकड़ों दासोके पीछे एकाध मालिक होता है । इसीका तर्क-शुद्ध बढ़ा-चढ़ा रूप है कि लाखों-करोड़ों अनुगत हों और एक डिक्टेटर हो । किन्हीं भी दोके बीचमें अगर दासता और प्रभुताका संबंध रहने दिया जाता है, तो उस रोगका उत्कर्ष स्वभावतः डिक्टेटर-शाहीमें सम्पूर्ण होता है । इस अर्थमें कहा जा सकता है कि पूँजीवाद डिक्टेटरशाहीको जन्म देता है। ___ जहाँ मशीनके उपयोगका परिणाम यह हुआ कि उस मशीनमें लगी पूँजीके मुनाफेकी ( returnकी) लगन प्रधान हो गई, वहाँ ही वह मशीन और वह उद्योग दानवी हो गया । क्यों कि तब मशीनके पेट भरनेकी चिन्ता आदमीको खाने लगती है, और तब उस मशीनके पेटको भरनेके लिए आदमियोंके पेटोको काटना पड़े तो क्या अचरज ? ___ मशीनमें आकर्षण है, इसलिए मशीन घरमें आई नहीं कि वही घरकी स्वामिनी बन जायगी और घरके लोग उस स्वामिनीके चाकर हो रहेंगे । इस तरहके डरकी आप बात कहते हैं और इसलिए सुझाते हैं कि मशीन मात्रको