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६-मार्क्स और अन्य प्रश्न-'वाद'के विषयमें आपने अभी जो कुछ कहा है उस कसौटीसे मार्क्सवादके बारेमें आपके विचार क्या हैं ? उसका सबसे मजबूत और सबसे कमज़ोर बिंदु ( =point) आप क्या समझते हैं ? __ उत्तर-यह तो किसी विद्वानसे पूछने योग्य प्रश्न है । मुझे इसमें शंका है कि मासिज्म समूचे जीवनको छूता है । वह समाज-नीति है, जीवन-नीति नहीं है । जीवन-नीति बहुत कुछ निर्गुण होगी । राज्यकी अपेक्षा वही राज-नीति और समाजकी अपेक्षा वही समाज-नीति बन जायगी । वह दर्शन-नीति होगी । दूसरे शन्दोंमें वह धर्मस्वरूप होगी।
मासिज्म जीवन-खोजका परिणाम अर्थात् जीवन-दर्शन ( = Life Philosophy ) नहीं है । वह एक राजनीतिक प्रोग्रामका बौद्धिक समर्थन है । यह उसकी सर्व-सुलभ विशेषता है और यही उसकी मर्यादा भी है।
माक्सिज़्म स्थितिको व्यक्तिसे नहीं जोड़ता । उसकी दृष्टिसे दोष अपने में देखनेकी जरूरत कम हो जाती है और दोषारोपण सामाजिक परिस्थितिमें किया जाने लगता है । परिणाम यह होता है कि आज इस घड़ी मुझे क्या कुछ होना और करना चाहिए, इसकी सूझ नहीं प्राप्त होती, न इसकी चिन्ता व्यापती है। समाज-विधान कैसा क्या होना चाहिए, निगाह उसी ओर लग जाती है । स्पष्ट है कि इस भाँति असल होनेमें विशेष नहीं आता, बुद्धि-भेद बढ़कर रह जाता है । इससे शाब्दिक विवादको उत्तेजन मिलता है । ___ मुझे कैसे व्यवहार करना चाहिए, इसके संबंधमें अगर कोई चेतना मुझमें न जागे, और इसकी जगह सोसायटीको कैसा होना चाहिए, इसी संबंधके संकल्पविकल्प मनमें चक्कर लगाते रहे तो यह स्थिति न व्यक्ति के लिए न समाजके लिए उपयोगी प्रमाणित हो सकेगी।
मासिज्म एक 'वाद' है, इसलिए जल्दी समझमें बैठ जाता है । खूब रेखाबद्ध