Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 231
________________ समाजक' वाद २१५ इस प्रकारकी समाज- रचना करने में वे सफल हो रहे हैं, यह बात मानने के लिए काफ़ी आधार है । फिर कैसे यह कहा जाय कि उस C वाद 'को सफलता नहीं मिली ? उत्तर सफलता 'वाद' को मिलती ही नहीं है । किसी भी 'वाद' को नहीं मिलती। लेकिन प्रत्येक 'वाद' के भीतर जो एक सचाई की धारा रहती है उसके कारण ही जो सफलता मिलती दिखाई देती है वह मिलती है । अगर ऐसा न हो और सफलता 'वाद' की मानी जांव तो अन्य 'वादों की उत्पत्ति कभी न हो और कोई 'वाद' पुराना पड़कर जीर्ण न हो जावे । आज अगर मुसोलिनी या हिटलर अपने अपने देशों में सर्व-प्रधान बने हुए हैं तो क्या यह कहना होगा कि फासिज्म नाजीज्म के सिद्धाताकी शाश्वत सचाई और सफलताका यह प्रमाण है ? मान भी लें कि वह उन 'वादों की सफलता है, लेकिन क्या फिर यह भी मानना पड़ेगा कि उसमें स्थायित्व है ? फिर जो स्थायी नहीं, वह सफलता भी क्या है ? व्यक्तिकी जरूरतें पूरी होने और उसकी योग्यता विकसित होनेके मार्ग की सब बाधाएँ समाजवादी- विधानद्वारा शासित देश में हट गई हैं : क्या सचमुच ऐसा प्रमाणित होने में आया है ? सोवियट रूसका प्रत्यक्ष परिचय मुझे नहीं है, लेकिन वहाँके जो मनोमालिन्यकी खबरें आती हैं, क्या वे बिल्कुल निराधार हैं ? अगर थोड़ी भी उनमें सचाई है तो यह माननेका कारण नहीं रहता कि वहाँ व्यक्ति और स्टेटमें, अर्थात् व्यक्ति और समाज में, संघर्ष न्यूनतम अवस्था तक पहुँच गया है । सबको काफ़ी खाने-पहननेको मिल जाता है इसका प्रमाण अंक तालिका ( = tatistics) काफी नहीं है। उसके बाद खाने-पहनने जितनी ही व्यक्तिकी माँग नहीं है । समाजका जीवित ऐक्य और संतोष ही इस बातका प्रमाण हो सकता है कि व्यक्ति समर्पित है । क्या आप कहते हैं कि समाजवादी रूसके समाजमें वैसी एकता और सद्भावना है ? प्रश्न - इसके लिए तो वहाँसे आने-जानेवाले यात्रियोंकी रिपोर्ट ही प्रायः एक मात्र आधार हैं। उनसे तो यही पता चलता है कि एकता और सद्भावना बढ़ती जा रही है । समाजकी आर्थिक स्थिति दिनोंदिन अच्छी हो रही है। उतनी विषमता उसमें नहीं है जितनी अन्यत्र है । पैसेको वह महत्त्व नहीं है जो अन्य देशोंमें है ।

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