Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 242
________________ २२६ प्रस्तुत प्रश्न व्यक्तिको सर्वथैव समाजके (=State के ) अंग-रूपमें देखा गया है तब प्रतिक्रियाके तौरपर फासिज्म मानो समाजके सिरपर व्यक्तिको प्रतिष्ठित करनेके लिए चल पड़ा है । जर्मनी हिटलर है और इटली मुसोलिनी है, बल्कि ये दोनों व्यक्ति स्वयं राष्ट्रसे भी बड़े हैं, ऐसी जो नाज़ी और फासिस्ट दलोंमें धारण पैदा की जाती है वह कल्याणी नहीं होगी। उससे नुकसान होगा। आज उसके कारण उन उन राष्ट्रोंमें जबर्दस्त संगठित एकता दिखाई देती हो, लेकिन उसमें विग्रह और हिंसाके बीज रहे हैं और जब वे फटेंगे तब आपसी खून बहे बिना राह न रहेगी । प्रश्न--आजकी स्थितिमें तो यही दीखता है कि निकट भविष्यमें या तो व्यक्ति-प्रधान फासिज्म या समाजप्रधान साइंटिफिक सोशलिज्म, इन दो से किसी एकको हमें चुनना होगा। अंतिम लक्ष्यकी दृष्टिसे आप किसे चुनेंगे? उत्तर-क्यों एकको चुनना होगा ? इनमें चुननेको विशेष अंतर नहीं है । सोशलिमको वैज्ञानिक और व्यवहार्य बनाते बनाते वह राष्ट्रीय बन जाता है । वह राष्ट्रीय समाजवाद (=National Socialism ) ही क्या फिर फासिज्म नहीं हो चलता ? सोशलिज्मकी कल्पनामें मानवताको राष्ट्रमें नहीं, अर्थात् भौगोलिक भागों में नहीं, अपितु आर्थिक वर्गों में विभक्त देखा गया है। किन्तु आजके दिन राष्ट्र-भावना एक जीवित वस्तु है और राष्ट्रकी सत्ता इसलिए आजकी जीवित राजनीतिक क्षेत्रमें पहली वास्तविकता है। अतः सोशलिज्मको अनिवार्यतया इस राष्ट्र-चेतना और राष्ट्र-सत्ताको स्वीकार करना पड़ता है । इस समझौतेके बाद यह संदिग्ध हो जाता है कि सोशलिज्म सोशलिज्म भी रहता है या नहीं । क्या अनजाने वह इस भाँति फासिज्म नहीं हो चलता? इन सब बातोंको देखते हुए सोशलिज्म और फासिज्ममें किसी एकको चुनने में कोई अर्थ नहीं रह जाता। प्रश्न--फासिज्मका ही जहाँ तक सवाल है, वहाँ तक तो वह हमारे अहिंसा और सत्यके कल्पना-मधुर सिद्धांतोंपर आश्रित आन्दोलनमें भी बढ़ता दीख रहा है। फिर आप इसीका समर्थन क्यों करते हैं?

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