Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 224
________________ २०८ प्रस्तुत प्रश्न varan. अपना मालिक मानकर स्वयं अपने को साफ-सुथरा और ईमानदार नहीं रख सकता हूँ ? अगर मैं ऐसा कर सकता हूँ तो बिना किसी एक विशिष्ट व्यक्ति अथवा संस्था (=-tate में) मालिकीकी भावनाको केन्द्रित किये कारखानोंका काम क्यों सुचारु रूपसे नहीं चल सकेगा, यह समझमें आने योग्य बात नहीं है। ___घरका बजुर्ग क्या अपने घरके भाई-बहिन, बेटे-बेटी, नाती-बहू सबका स्वत्वाधिकारी 'मालिक' कहा जा सकता है ? उस अर्थमें वह मालिक नहीं है । और जिस अर्थमें वह प्रमुख है उस अर्थमें वैसे प्रमुख तो हर समय हर समुदायमें हो ही जावेंगे। उनके लिए, उनके बनाने-मिटाने के लिए, किसी विधानविशेषकी आवश्यकता अनिवार्य तभी तक है जब तक आपसी सद्भावकी बहुत कमी है। प्रश्न-आज जो भौगोलिक आधारपर संसारका विभक्तीकरण किया गया है क्या वह इस दशामें नहीं रहेगा, यह आप गृहीतसा मानते हैं? उत्तर-जब मानवता उस तल तक उठ जायगी तब तो प्रतीत होता है कि सचमुच राष्ट्र और राष्ट्रमें इतना भेद, कि पासपोर्ट जरूरी हो, नहीं रहेगा । नामरूप राष्ट्र तो रह ही सकते हैं। जैसे मेरे और आपके अलग अलग नाम हैं और उन नामोंके अलग अलग होनेसे सुभीता ही होता है, उन नामोंकी पृथक्ताके कारण सहसा लड़ाई नहीं हो जाती, वैसे ही हिन्दुस्तान और इंग्लिस्तान ये दोनों भी क्यों न रह सकेंगे? पर दोनों एक बृहत् परिवारके सदस्य होंगे, हाकिममहकूम नहीं होंगे। प्रश्न-जो चित्र आप देख रहे हैं वैसा ही कुछ चित्र साम्यवादी भी अंतमें मानव-जातिका देखते हैं। तो क्या आपको मैं साम्यवादी (=Marxist) कह सकता हूँ? उत्तर--अगर वह ऐसा ही चित्र है तो मेरे लिए यह खुशीकी बात है। और अगर साम्यवादी मुझे अपनो का एक समझने लगे तो मुझे आपत्ति न होगी। लेकिन क्या आप कहते हैं कि वैसा है ? प्रश्न-अंतिम स्थिति तो प्रायः वैसी ही है परन्तु आपके और उनके मार्ग बिल्कुल उल्टे हैं । इसका कारण यही है कि आपके मानव

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