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प्रस्तुत प्रश्न
बाहरी समता लक्ष्य यदि हमारा हो भी, तो इसी हेतुसे वह हो सकता है कि उस तरहसे लोग आपसमें द्वेष-भाव रखनेसे बचें । वह द्वेष-भाव कम नहीं होता है, तो ऊपरी समता हुई न हुई एक-सी है। अगर वैसी समता किसी बाहरी कानूनसे लाद भी दी गई तो वह टिक नहीं सकेगी और बहुत जल्दी पहलेसे भी अधिक घोर विषमताओंको जन्म दे बैठेगी। ____ समाजवादीका ध्यान फलकी ओर है, बीज बोनेकी ओर नहीं। कार्यकी ओर हे, कारणकी ओर उसका ध्यान कम है। फल प्रेमका चाहते हैं तो बीज भी तो प्रेमका ही बोना होगा। फलासक्ति बीजकी ओरसे असावधान हमें कर दे, तो यह दुर्भाग्यकी बात है।
प्रश्न-आप कहते हैं कि समाजवादीका मूल कारणपर ध्यान नहीं है। लेकिन असल बात तो यह है कि उसने मानव जातिके इतिहासकी खोज और विश्लेषण करके ही अपना निष्कर्ष निकाला है और उसीके आधारपर समाजवादकी रचना की है । तब यह कैसे कहा जा सकता है कि मूल कारणपर उसका ध्यान नहीं है ?
उत्तर-शायद मैं गलत शब्द कह गया । यह अभिप्राय नहीं है कि उन्होंने उस ओर कम प्रयत्न किया है । बुद्धि जो कह सकती थी वह उन्होंने कहा
और जहाँ वह पहुँच सकती थी वहाँ तक वे पहुँचे । यह भी न कहा जा सकेगा कि वे विचक्षण विचारक लोग अपने बारेमें ईमानदार नहीं थे। फिर भी ऐसा मालूम होता है कि उन्होंने अपने और अपनी बुद्धिके ऊपर बहुत भरोसा कर लिया । बुद्धि हमें सब कुछ तो नहीं दे सकती । बुद्धिपर एक धर्म लागू है । प्रेम वही धर्म है । जो बुद्धि उस प्रेमको बिना माने चले वह फिर समाजका कल्याण कैसे साध सकेगी, यह समझनेमें मुझे कठिनता होती है । क्यों कि जहाँ समाजका प्रश्न आया, वहाँ तो व्यक्तियों के परस्पर संबंधोंका प्रश्न ही आ गया । वे संबंध मेल
और सहचारके ही हो सकते हैं, यदि वे अन्यथा होंगे तो उन्हें समाज-कल्याण नहीं कहा जा सकेगा।
जहाँ यह कहा गया कि समाजवाद मूल कारणकी ओर देखनेसे रह गया है वहाँ कुछ और मतलब नहीं है। मतलब यही है कि उन्होंने बुद्धिके हाथमें लगाम देकर कदाचित् हृदयकी कोई बात नहीं सुनी। मनुष्य बुद्धि ही बुद्धि तो नहीं है । हृदय भी तो वह है । और कौन जानता है कि बुद्धि जाने-अनजाने