Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 223
________________ औद्योगिक विकास : शासन-यंत्र २०७ उत्तर-मूल भेद यह होगा कि मालिक और मजूरका संबंध टूटकर पूँजी और श्रममें भाईचारेका और सविवेक सहयोगका संबंध हो जायगा । सहयोगपर बड़े उद्योग चलेंगे। उसमें एक कुछ काम करेगा तो दूसरा कुछ और । उनके दायित्वोंमें विभेद होगा तो थोड़ा-बहूत अधिकारों में भी अंतर हो जायगा। लेकिन इस सबके होते हुए भी, यानी विषमता होते हुए भी, उनमें सद्भावना अर्थात् समता होगी । देश स्टेटरूप न होकर मानों एक बड़े कुटुम्बका रूप होगा । कुटुम्बमें छोटे-बड़े होते हैं वैसे ही देशमें भी होनेको छोटे-बड़े हो सकेंगे। कुटुम्बमें क्या छोटे-मोटे मन-मुटाव नहीं होते ? वे न हों तो जिन्दगी ज़िन्दगी ही नहीं । लेकिन वह आपसमें हल कर लिये जाते हैं । वैसे ही तब उनका साधारण समाधान किसी बाहरी पुलिस और मजिस्ट्रेटकी मददके बिना हो जा सकेगा। प्रश्न-हम इस ओर आगे बद रहे हैं या नहीं, इसकी परख क्या हो सकती है? उत्तर-धर्म-भावना और नैतिक भावनाकी कमती-बढ़ती ही अवनति और उन्नतिकी पहचान समझनी चाहिए । मनमें हमारे कटुता है तो हम उन्नति नहीं कर रहे हैं । उन्नति अहिंसाद्वारा ही संभव है। प्रश्न-अपने कहा कि देश एक परिवारकी तरह होगा जो प्रेमके उसूलपर चलेगा। ऐसी हालतमें जो उद्योग आदि होंगे, उनका मालिक कौन होगा ? स्टेट न होगी तब ऐसा कौनसा तरीका या संगठन होगा जिससे इस परिवारका कारोबार, प्रेमके उसूलपर ही क्यों न हो, सुनियंत्रित किया जा सके ? उत्तर-मालिक कौन होगा ! अगर मैं यह कहूँ कि मालिक कोई नहीं होगा, तो क्या आपको इससे यह प्रतीत हो आता है कि तब सुव्यवस्था ही नहीं हो सकेगी? मान लीजिए, आपसमें एक दूसरेसे दूर दूर रहनेवाले कुछ खगोल-विशेषज्ञ विशेषरूपमें टेलिस्कोपमें दिलचस्पी लेते हैं । अब कुछ ऐसे भी व्यावहारिक लोग हैं जो टेलिस्कोपके बनानेमें रसपूर्वक भाग ले सकते हैं । तो मैं यह कह सकता हूँ कि टेलिस्कोप बनानेके वे व्यवहारज्ञ लोग मालिक होंगे, और उस टेलिस्कोपके प्रकारके निर्णय करनेवाले वे वैज्ञानिक लोग भी मालिक होंगे । 'मिल्कियत' और 'मालिकी' यह शब्द आजके दिन किसी कदर खोटे पड़ गये हैं। नहीं, तो सच पूछा जाय तो मैं क्या अपना भी मालिक हूँ ? क्या मैं ईश्वरको

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