Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 221
________________ औद्योगिक विकास : शासन-यंत्र २०५ प्रश्न-तो आप समाजके बीच परस्पर सम्पर्क अधिकसे अधिक रहना ठीक समझते हैं। मैं भी समझता हूँ कि यह संपर्क अधिकसे अधिक होना चाहिए। यही नहीं प्रत्येक मनुष्यको, यदि सारा संसार संभव न हो, तो, कमसे कम अपने देश या खंडका निरीक्षण करनेका मौका जरूर होना चाहिए । इसके लिए आवागमनके तरीके उसको सुलभ होने चाहिए। यह काफी खर्चकी बात है । जब बड़े बड़े उद्योग नहीं रह जावेंगे तब तो आवागमन और भी महँगा होगा और आमदनी लोगोंकी कम होगी। तब क्या यह न होगा कि हज़ार इच्छा होनेपर भी संपर्क असंभव हो जायगा और हम जो चाहते हैं उसके ठीक विपरीत परिणाम निकलेगा? उत्तर-संपर्क व्यापक होना चाहिए, घनिष्ठ भी होना चाहिए । व्यावसाविक हेतुको लेकर अब भी जो लोग इधर उधर काफ़ी घूमते हैं उनका साहस तो खुल जाता हो, लेकिन इससे उनकी सांस्कृतिक पूँजी बढ़ जाती है, यह प्रमाणित होता हुआ नहीं दीखता है । अर्थात् घूमना और विचित्रताओंका निरीक्षण करना उपयोगी है अवश्य, किन्तु वह अनिवार्यतया नैतिकताका साधक नहीं है । जो पिंडमें है वही तो ब्रह्माण्डमें है, इसलिए क्षेत्रकी दृष्टिसे परिमित दायरमें रहना सांस्कृतिक दृष्टिसे भी संकुचित बन जाना है, ऐसी बात नहीं है । ईसाके जमानेमें आने-जानेके साधन दूत-गामी नहीं थे, और जो होंगे भी वे ईसाको उपलब्ध नहीं थे । ईसाका समूचा जीवन परिमित क्षेत्रमें ही बीता। लेकिन क्या इस कारण उनके जीवन में अपूर्णता रह सकी ? फिर भी घूमनाफिरना मस्तिष्कको विशद करनेमें साधारणतया उपयोगी ही है। उससे सहानुभूति व्यापक होती है और जी खुलता है । किन्तु व्यावसायिक बृहद् उद्योगोंके अभाव में यातायातके साधन क्यों दुर्लभ हो जाने चाहिए, यह मैं नहीं समझ सका। रेल, मोटर, हवाई जहाज़, समुद्री. जहाजका बनाना निषिद्ध नहीं ठहराया जा रहा है । पर उनके निर्माणकी वर्तमान प्रेरणाको बदलनेका आग्रह जरूर किया जा रहा है। वह प्रेरणा व्यावसायिककी जगह सांस्कृतिक होनी चाहिए । वैसा यदि संभव हो, और अगर आज होनेमें आ जावे, तो अन्य (पड़ौसी अथवा विदेशों) राज्योंसे अपनी रक्षा करने अथवा उनपर आक्रमण करनेके लिए सामरिक तैय्यारी रखनेमें जो विपुल मानव-शक्ति

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