Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 206
________________ प्रस्तुत प्रश्न रहेंगी। हाँ, सांस्कृतिकताके नामपर जो आडम्बर रच डाला गया है, और जिसको अपने चारों ओर बटोरे रखना संस्कारिताका लक्षण मान लिया गया है, उसका सुभीता बेशक देहातमें नहीं है। लेकिन यह तो अच्छी ही बात है कि देहातमें जाकर वैसे इज्जतके साज-बाजसे सहज छुट्टी मिल जाती है। संक्षेपमें व्यवयास और अर्थके क्षेत्रमें विकीरणकी नीति ( =Industrial and Economic Decentralization ) और संस्कृतिके आधारपर केन्द्रीकरणकी नीति(=Cultural Centralization)व्यवहारमें आनी चाहिए। प्रश्न-~-आपने सांस्कृतिक एकत्रता ( =Cultural Centralization ) और आर्थिक स्वावलंबनकी ( =Economic Decentralization की) बात कही, वह वस्तुतः आवश्यक होते हुए भी, किसी एकाधिपतिके अनुशासनके ( =Totalitarian State के) सिवा असंभव जान पड़ती है। यानी ऐसी स्थिति हिंसाके बलपर ही लाई जा सकती है। अगर अहिंसाके सिद्धांतपर स्थिर रहा जाय तो यह स्थिति कभी न आयगी। उत्तर - आर्थिक स्वावलंब-विस्तार (=Progre-sive Economic Decentralization ) और एकतंत्रशाही ( =डिक्टेटरशिप ) ये दोनों विरोधी वस्तुएँ हैं । डिक्टेटरशिपके माने ही है एक केन्द्रमें सिमटी हुई भौतिक ताकत । अगर आर्थिक दृष्टिसे परिवार अथवा नगर अथवा प्रान्त स्वावलंबी होने लग जावे तो उनमें विवेक-संगत स्वाभिमान भी जग जायगा । और ऐसी अवस्थामें कोई उनके ऊपर डिक्टेटरी सत्ता तो असंभव ही हो जाती है । हाँ, केन्द्र एक ऐसा तो होना ही चाहिए जहाँस तमाम देशको ऐक्य प्राप्त हो : जैसे शरीरमें हृदय । उसीको सांस्कृतिक एकताका आधार (=cultural centralization) कहा । __वह अवस्था, जब कि आर्थिक और पार्थिव दृष्टिसे व्यक्तिमात्र पराधीनतासे छूट जाय और स्वाधीनचेता हो जाय, लाना आसान नहीं है । पर इष्ट वही है । और उसको संभव बनाने के मार्गमें संस्थागत शासनाधिकारोंसे भी लाभ ले लेना होगा । जिसको कहते हैं ' लेजिस्लेचर्स ' यानी कौंसिलें उनका उपयोग भी करना होगा। और उसमें लेजिस्लेशनको कार्यरूपमें परिणत करने के लिए विद्यमान् शासन

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