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११ - सन्तति, स्टेट और दाम्पत्य
प्रश्न - संतति- उत्पादन राष्ट्रके निर्माणमें एक अहमियत रखता है । इसलिए वह राष्ट्रका प्रश्न भी हो जाता है। तो क्या संततिउत्पादनमें राष्ट्रका हस्तक्षेप उचित और आवश्यक नहीं है ?
उत्तर - राष्ट्रका इस मामलेसे कुछ न कुछ तो संबंध है ही, किन्तु, सब व्यक्तियोंको पिता बने हुए देखनेका जिम्मा राष्ट्रका हो, सो नहीं । राष्ट्र-कर्म विविध-रूप है । गृहस्थ उसमें काम आता है तो संन्यासी राष्ट्रके उससे भी अधिक काम आ सकता है । फिर राष्ट्र-हित संन्यासीको गिरस्ती क्यों बनाना चाहेगा ?
इस संबंध में कहना होगा कि स्टेट वहाँ तो हस्तक्षेप कर सकती है जहाँ कोई व्यक्ति असामाजिकताको बढ़ाता हो अथवा समाजको दूषित बनाता हो । यथा, स्टेट के लिए जरूरी है कि वह रोगियो और विक्षिप्तोंके आराम और इलाज के लिए अस्पतालोंका प्रबंध करे । वहाँ रहकर अपने रोगसे मुक्त होने की वे सब सुविधा पायें और उस रोगका समाज में प्रविष्ट करने की सुविधा वहाँ उन्हें न हो | जब तक वे एक खास हदतक रोग मुक्त नहीं हो जाते, स्टेट उन्हें अधिकार-पूर्वक प्रजोत्पादन से अलग रख सकती है । इसी तरह अन्य असामाजिक प्रवृत्तियों को फैलने से रोका जा सकता है । किन्तु यहाँ हम कुछ मौलिक प्रश्नके किनारे पहुँच गये हैं । वह प्रश्न है व्यक्ति-धर्म और समुदाय धर्मका संबंध | प्रतिभा भी थोड़ी-बहुत असामाजिक वस्तु है । इसलिए शायद हरेक प्रतिभावान् मनुष्यको समाजकी अवज्ञा प्राप्त होती है । समाज आरंभ में उससे भरसक बचता है, उससे आशंकित रहता है और मैं कह सकता हूँ कि प्रतिभाका और समाज विधानका जरूर संघर्ष चलता है । मैं इस हक में नहीं हूँ कि सामाजिक विधान पहलेसे प्रतिभाके स्वच्छंद वर्त्तनके लिए अपनेमें छूट रक्खे । प्रतिभा भी एक प्रकारका पागलपन ही है । मैं समझता हूँ कि प्रतिभावान् मनुष्य के लिए लगभग वैसा ही प्रबंध होना चाहिए जैसा कि साधारणतया एक विशिष्ट राजनीतिक अपराधी के लिए होता है ।
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