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प्रस्तुत प्रश्न
प्रश्न--क्या स्त्री कोमलता आदि कुछ ऐसे गुण प्रधान हैं, जो पुरुषोंमें कम मिलते हैं ? तो क्या ये गुण (कोमलता आदि) पुरुषत्वके विरुद्ध हैं?
उत्तर--विरुद्ध नहीं कहना होगा। असलमें आदर्शका रूपक जब बाँधा गया है, तो उसको 'अर्धनारीश्वर' विशेषण भी दिया गया है । इसलिए पुरुषत्व
और नारीत्वमें किंचित् विरोध मानकर भी अन्तमें तो दोनों ही समन्वित होंगे, ऐसा मानना होगा । दाम्पत्य और परिवार ऐसी ही सम्मिलित संस्थाएँ हैं, जिनमें एकके सहयोगसे दूसरा संपूर्ण होता है ।
प्रश्न-क्या पुरुषत्वमें स्त्रीत्वकी अपेक्षा कुछ न कुछ कठोरताका होना अनिवार्य है ?
उत्तर - नहीं तो क्या ?
प्रश्न-तो क्या वह कठोरता स्त्रीके मुकाविले पुरुषकी एक-मात्र विशेषता है ?
उत्तर - एक-माय क्यों ? और मृदुता अगर कुछ भी कठोर बनना न जान सके तो क्या वह निकम्मी ही चीज न हो जायगी? इसी भाँति पुरुपकी कठोरता भी स्त्रीकी कोमलताकी ओर प्रेमसे उमड़कर कठोर कम यद्यपि तेजस्वी अधिक हो जाती है । फिर ये तो शब्द हैं । यो क्यों न कहो कि स्त्रीकी विशेषता यह है कि वह स्त्री है, और पुरुष अपनी ही विशेषतासे पुरुप है। उनकी विशेषताओंको अलग किसी और शब्दमें बाँधनेके आग्रहकी आवश्यकता नहीं है ।
प्रश्न--पुरुष अपनी कठोरतासे जिस सघर्पसे निवटता है, उससे क्या स्त्रीकी कोमलतासे भी निवटा जा सकता है ?
उत्तर-कठोरताका आदर्श कठोरता नहीं है । कोमलतासे वह अपना सम्बन्ध जोड़ सके, कठोरता युगपत् भीतरसे कोमलता हो, यह उसका आदर्श है।
ईटसे मकान बनता है। क्या मिट्टीसे काम नहीं बन सकता ? लेकिन मिट्टी और ईंटमें प्रकृतिके लिहाज़ इतना ही तो फर्क है कि ईंट पकी हुई मिट्टी है । मिट्टी पक जाय तो ईट हो जाय । पत्थर भी क्या मिट्टीका ही नहीं होता ? इसलिए यह पूछना कि स्त्री-सुलभ कोमलतासे क्या जीवन-संघर्षको पार नहीं किया जा सकता, विशेष अर्थकारी नहीं है । क्यों कि जो स्त्री अपेक्षाकृत निस्सहाय और