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क्रान्ति : हिंसा-अहिंसा
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पर ऐसे काल्पनिक उदाहरणको लेकर हम अटकें क्यों ? फिर सामाजिक प्रश्नको लेते समय ध्यान रखना होगा कि यहाँ आदमी और शेरका सवाल नहीं है, यहाँ तो आदमी और आदमीका ही सवाल है । शेरके साथ व्यवहार करनेमें जो छूट आदमीको मिलती है, वह मनुष्य के साथ व्यवहार करने में नहीं मिल सकती। यों तो इतिहासमें ऐसे उदाहरण भी मिले हैं जहाँ सचमुच आदमियोंका शिकार किया जाता था। पुराने इतिहासमें ही क्यों, अदल-बदलकर वह शिकारकी वृत्ति अब भी हमारे बीच से अनुपस्थित नहीं है। लेकिन उसको निंद्य ठहराना होगा । और अगर प्रगति करनी है तो उससे विपरीत नियमको, अर्थात् प्रेमके नियमको, विवेकपूर्वक स्वीकार करना होगा।
प्रश्न- यदि कभी ऐसी स्थिति हो कि कुछेक बहु-संख्यक कुछेक थोड़े लोगोंके शिकार होनेको हैं, और उन्हें बचानेके लिए समयका तकाजा कृट-नीति और पाशविक वलहीके लिए हो,-बरना अहिंसक रहने में उनका नाश निश्चित हो, तव आप क्या करेंगे?
उत्तर-ऐसा हो, तभी पा सकूँगा कि मैं क्या करता हूँ। लेकिन यह तो मैं मानता हूँ कि मनुष्यके लिए कोई स्थिति ऐसी नहीं हो सकती जब पशुताका मार्ग ही एक मार्ग रह जावे । ऐसा है तो वह मनुष्य किस लिए है ? कूटनीतिके रास्तेसे प्रारम्भमें बचाव दीखता , लेकिन वह भ्रम है। खतरा अगर ऐसे टलता है तो टलनेके साथ वह बढ़ भी जाता है । इसलिए अगर कूटता और पशुताका उपाय उपाय हो भी, तो भी वह दूर-दर्शिताका उपाय नहीं है।
ऊपरके उदाहरणमें शिकार होनेवाले लोगोंकी संख्या आप अधिक बताते हैं । तब तो स्थूल बल भी उन लोगोंके पास अधिक हुआ। ऐसी हालतमें मेरी समझमें नहीं आता कि वह स्थल बल, जो कि उनके पास पहलेहीसे मौजूद है पर जिसके रहते हुए भी वे पराभूत हैं, आखिर फिर क्यों कर महत्त्वपूर्ण ठहराया जा सकता है ?
अगर कूटनीति उन्हें विनाशसे बचा सकती है, तो इसलिए नहीं कि वह कूट है, बल्कि इसलिए कि वह नीति है। मेरा कहना यही है कि खुलकर देखा जाय तो संकटके समय स्थूल बल नहीं, नीतिका बल ही अधिक उपयोगी होता है । और यह भी आसानीसे देखा जा सकता है कि जो नीति जितनी