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क्रान्ति : हिंसा-अहिंसा
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प्रश्न-किन्तु मानव-समाजका वह वर्ग जिसकी रही-सही पशुता उग्र होकर सिंहकी हिंसकताका रूप धारण कर दूसरोंको खाने में लगी है, और मानवता जिन्हें अपील ही नहीं कर सकती, उनसे बचनेके लिए सशस्त्र शक्तिस काम लेना क्या अनुचित होगा?
उत्तर-मैं ऐसे किसी आदमीके होनेमें विश्वास नहीं करता जो विधाताकी भूलसे मनुष्य बन गया है पर असलमें है वह कोरा पशु । जब ऐसे आदमीमें ही विश्वास नहीं करता, तब ऐसे वर्गमें तो विश्वास कर ही कैसे सकता हूँ? असलमें पशुता हम सबमें ही थोड़ी-बहूत है। क्या अमीर क्या गरीब, जब पशुता जागती है तो हम सभी निकृष्ट व्यवहार करते हैं । जब मैं किसी आवशमें निकृष्ट व्यवहार कर रहा होऊँ तब क्या यह पसंद करूँगा कि मुझे मार दिया जाय ? मैं तो खैर अपना मरना क्यों पसंद करने लगा, लेकिन क्या आप यह पसंद करेंगे? इसी तरीकेसे मैं कहना चाहता हूँ कि जो निकृष्ट कर्म करता दीखता है, उसके भीतर संभावना है कि वह उत्कृष्ट कर्म भी कर सके । मैं मनुष्यताके बारेमें निराशा और अविश्वासका रुख पकड़कर चलनेका समर्थन नहीं कर सकता । मैं पूछना चाहूँगा कि जो पागल है, जो चोर है, जो डाकू है, वह क्यों ऐसा है ? क्या हम अक्लका दिवाला निकाल बैठे और यह सोचनेका प्रयत्न न करें ? इसमें कुछ नहीं लगता कि किसीको दुष्ट कहा और उसे मौतके घाट जा उतारा । लेकिन, इस नीतिको खुल्लमखुल्ला इस्तेमाल करना मनुष्यताके लिए अपनी हार माननसे कम नहीं होगा। ___ यह विवेकसे और विज्ञानसे हाथ धो लेना होगा । मैं कह सकता हूँ कि अपराधी अकारण अपराधी नहीं होता और अपराधके साथ व्यवहार करनेका उपाय दंड देना ही नहीं है । जैस रोगियोके लिए, वैसे अपराधियों के लिए भी अस्पताल हो सकते हैं । अपराध-चिकित्साके माने हैं कि हम प्रत्येक व्यक्तिकी मूल मानवतामें विश्वास रखते हैं और उसके स्वभावमें जो विकार आ गये हैं, प्रयत्नद्वारा उसका प्रतीकार करनेमें विश्वास रखते हैं। बदला लेने और बदलेमें जान तक लेनेकी नीतिका समर्थन करना मानवताके अब तकके इन प्रयत्नोंको निःसार मान बैठना होगा । क्या आप मुझे इतना अविश्वासी बना हुआ देखना चाहते हैं ?
प्रश्न-क्या आप मानते हैं कि समाजमें एक ऐसा वर्ग है जो कि