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प्रस्तुत प्रश्न
प्रश्न-जीवनकी परिपूर्णतासे आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-मैं द्वन्द्व-हीनताको व्यक्तित्वकी एकता मानता हूँ। वैसी एकतामें फिर व्यक्तिकी पूर्णता भी है ।
प्रश्न--विशेषज्ञतासे एकांतता आनेका डर आपने बताया है और साथ ही उसे आवश्यक भी। तो क्या आप किसी उदाहरणसे बतलायेंगे कि किस हालतमें विशेषज्ञताकी उस एकांतताके साथ हम जीवनकी परिपूर्णताको हासिल कर सकते हैं?
उत्तर-एक आदमी वही चाहता है, जिसका अपने में अभाव पाता है । स्वप्न अतृप्तिके प्रतीक हैं। ___ जब तक हममें चाह शेष है, हम अपूर्ण हैं। किंतु चाह जीवनका लक्षण भी है । To aspire is too live | इसका अर्थ यह भी हो जाता है कि जब तक हमारा ( व्यक्तिगत ) जीवन संभव है, तब तक हम संपूर्ण भी नहीं हैं। ___ इसलिए विशेषज्ञताके लिए वैयक्तिक और सामूहिक जीवनमें पूरा अवकाश है। फिर भी विशेषज्ञता तो संपूर्णता हो ही नहीं सकती क्योंकि उसके शब्दार्थमें ही गर्मित है कि कुछ है जो ऐसे विशेषज्ञके निकट अ-विशेषता अतः पराया (अज्ञात) भी है । विशेषज्ञता इसलिए ज़रूरी तौरपर परिबद्ध (=Exclusive) भी हो जाती है । इसी भावमें मैंने कहना चाहा है कि विशेषज्ञता संपूर्णताकी राहमें बाधा है।
अभी कमजोर बालकके लिए कैल्शियमकी खूराक देनेका उदाहरण दिया गया है । उस बालकके रोगका जहाँ तक संबंध है, कैल्शियम-युक्त पदार्थोंका विशेषज्ञ उस बालकके लिए सबसे ज्यादा उपयोगी परामर्शदाता समझा जायगा । बच्चेकी तात्कालिक अवस्थाकी दृष्टिसे वह विशेषज्ञ विश्वका सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता है। पर यह आंशिक दृष्टि ही है। इसी भाँति विशेषज्ञता विभक्त जीवनकी विविधसे एक एक खंडके उपयोगकी दृष्टिसे संभव और उपयोगी बनती है। समग्र और अखंड जीवन-तत्त्वके विचारसे देखें तो वह चीज़, यानी वैसी विशेषज्ञता, उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं रह जाती।
मैंने नहीं कहा कि अमुक वस्तुका विशेष ज्ञान शेष वस्तुओंके ज्ञानमें बाधास्वरूप है । लेकिन उस एक वस्तुका ज्ञान सर्वात्म-स्वरूप अखंड-तत्त्वके प्रति व्यक्तिके नातेकी चेतनाको मंद कर दे तो वह हितकारी नहीं है । लौकिक दक्षता और विशेषज्ञता इसी कारण एक स्थलपर जाकर अहितकारी मालूम होने लगती है।