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ऐतिहासिक भौतिकवाद
ताकतकी नीति नहीं रहती, वह कुछ और हो जाती है। क्या हम उसको अहिंसा कहें ?
विज्ञानके साथ जो सच्चे जीवनके योगकी बात कही उसका भावार्थ यही अहिंसा यानी प्रेम-भावनाका योग है । पूर्ण अहिंसक पूर्ण मनुष्य है।
प्रश्न-'अहिंसा' शब्दका आज खूव उपयोग किया जा रहा है और इसके अर्थ भी नाना प्रकारके लगाये जा रहे हैं। परिणाम यह हुआ है कि इसके कारण हमारी असली समस्याएँ और उलझी-सी दिखाई देने लगी हैं। इससे आगे, इस शब्दके अर्थका ठीक माप भी समझमें नहीं आता। तो क्यों उस शब्दको वचाकर सादी बोलचालकी भाषासे हम काम न चला लें ? आप ही बताइए उस शब्दसे यहाँ आपका क्या भावार्थ है ?
उत्तर-क्लिष्टता लाने की इच्छासे वह शब्द प्रयुक्त नहीं किया गया। वह वैसे तो चलते सिक्के की तरह प्रचलित हो गया दिखता है। उसमें कठिनाई कहाँ है ? लेकिन हाँ, लोग उससे अलग अलग भाव लेते हैं । भाववाचक सभी शब्दोंके साथ ऐसा होता है; पदार्थ वाचक शब्दोके साथ ऐसा झगड़ा नहीं उठता। जो वैसे स्थूल पदार्थके बोधक नहीं हैं उन सभी शब्दोंके बारेमें गलतफहमी मिलेगी । इसका उपाय उन शब्दोंका बहिष्कार नहीं है । उपाय यही है कि उन शब्दोंमें कुछ आचरणीय तत्त्व हम देखें और कुछ अपनी अनुभूतिका तथ्य उनमें डाल सके। वैसा न हो, उन शब्दोंके उच्चारके पीछे कोई वास्तविकता न दीखती हो, तो सुनकर भी ऐसे शब्दको अनसुना कर देना चाहिए । और अनुभूतिहीन शब्द तो अपने मुंहसे निकालना ही नहीं चाहिए । ___ 'अहिंसा' शब्दकी भिन्न लोग भिन्न परिभाषा देते हों तो कोई बाधा नहीं है। बाधा तभी उपस्थित होती है जब ऐसे लोग अपने अर्थोको लेकर आपसमें झगड़ा मचानेपर तुल जाते हैं।
अहिंसक पुरुष, यानी प्रेमी पुरुष । जो चींटियोंको चीनी खिलाता है और पड़ौसीकी खबर नहीं रखता वह अहिंसक नहीं है। जो अपने सुखको दूसरेके साथ बाँटता है और दूसरेके दुखको स्वयं बाँट लेना चाहता है, अहिंसक वह है। हिंसा नहीं करता : इसका मतलब है कि प्रेम करता है। कर्महीनता झुठी अहिंसाका लक्षण है । जब कर्म न होगा तब हिंसा ही कहाँसे होगी ? ऐसी