Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 189
________________ प्रतिभा १७३ एक अव्यक्त, दूसरा व्यक्त । अव्यक्त भावनात्मक है, व्यक्त कृत्य-रूप है । अव्यक्त कारण, व्यक्त कार्य । कृत्य-कर्ममें तो भिन्नता और विविधता है ही। उसमें श्रेणियाँ हैं। उसीमें ललित कला और उपयोगी कला आदिके भेद हैं । इसीसे स्वधर्म जुदा-जुदा हैं । ___ मेरा कहना यह नहीं है कि आदर्श व्यक्ति उपयोगिता, लालित्य अथवा कर्मसे हीन होगा, या वह केवल भावनात्मक ही होगा । वह वैविध्य शून्य होगा, यह भी नहीं । कहनेका आशय यह है कि उसके जीवनका प्रत्येक श्वास और प्रत्येक कर्म जिस भावनासे अनुप्राणित होगा, वह अधिकाधिक आदर्शसे तत्सम होगी। यश, नामवरी, दूसरेको नीचा दिखानेकी वृत्ति, महत्त्वाकांक्षाकी भावना आदि तरह-तरहकी प्रेरणाएँ हो सकती हैं जिनको लेकर व्यक्ति बाहरी किसी अमुक स्थूल कर्मके संपादनमें असाधारण चातुर्य दिखा उठे। वह देखने में प्रतिभा जान पड़ेगी, लेकिन मैं उस प्रतिभाका कायल नहीं हो पाता हूँ। प्रश्न-अच्छा कहो या बुरा, लेकिन हम देखते हैं कि कुछ व्यक्तियोंमें कुछ न कुछ असाधारण कर गुजरनेकी शक्ति होती है। और कुछमें इतनी कम कि मुश्किलसे कोई उन्हें जान पाता है। ऐसे दो प्रकारके लोगोंमें जिस वस्तुका अन्तर है, क्या वह कोई वास्तविक (=positive) चीज़ नहीं है? उसे आप क्या नाम देंगे? उत्तर--उसको मैं नाम दूंगा ' व्यक्तित्वकी एकता' । शक्ति सबमें है और जो शक्तिहीन है, दोपी वह स्वयं है । विधाता दोषी नहीं है। प्रश्न-व्यक्तित्वकी एकता, शक्ति और प्रतिभा, इन तीनोंमें आप क्या भेद मानते हैं? उत्तर--यथार्थमें मैं भेद नहीं मानना चाहता । प्रचलित शब्दार्थमें तो भेद है ही। उस भेदके लिए क्या आप चाहते हैं कि मैं परिभाषा बनाकर दूँ ? प्रश्न-व्यक्तिकी एकताको आप स्पृहणीय मानते हैं ? उत्तर--जरूर । प्रश्न-लेकिन उपर्युक्तके अनुसार जो लोग अस्पृहणीय कार्य करके असाधारण हो जाते हैं, उनमें व्यक्तित्वकी एकताको आप क्यों स्पृहणीय मानेंगे? उत्तर-असाधारण कार्य करनेके लिए सदा निष्ठाकी आवश्यकता है । वह कार्य यदि अस्पृहणीय है तो इसी कारण कि उसकी निष्ठाके मूलमें ऐक्य भावना

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