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प्रस्तुत प्रश्न
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क्या वह न्यूटनको वैज्ञानिक और कालिदासको कवि कालिदास रहते हुए अलभ्य था? यदि नहीं तो बुद्धकी महानताके मार्गमें न्यूटन और कालिदासके जैसाप्रतिभावान होना क्योंकर रुकावट है ?
उत्तर-इस प्रश्नका तो यह अर्थ हो जाता है कि बुद्ध क्यों कालिदास और न्यूटन नहीं हुए और क्यों कालिदास बुद्ध नहीं बन गये ? में इसका जवाब नहीं दे सकूँगा । फिर भी, मुझे ऐसा मालूम होता है कि वह व्यक्ति जिसके प्रति जगत् और इतिहास अधिकाधिक ऋणी होगा, कोई ऐसा ही व्यक्ति होगा जो अकिंचन हो । सम्पत्तिकी ओरसे अकिंचन, उसी तरह ज्ञान अथवा कला समझी जानेवाली अन्य विभूतियोंकी ओरसे अकिंचन । वह तो प्रकाशरूप और सेवामय होगा । भीतर आग, बाहर स्नेह । ज्ञानी अथवा लेखक होने की फुर्सत उसे होगी ही कहाँ ? या अगर ज्ञानी और लेखक वह होगा भी तो इस भाँति कि जैसे राह चलतेकी ये उपाधियाँ हो । वे ( तत्त्व-ज्ञान और काव्य ज्ञान) बिल्कुल उसके आत्म व्यक्तीकरणके साधनके रूपमें होंगे, उसमें समाये हुए होंगे। इस लिहाजसे शायद वह न नामी कवि और न नामी वैज्ञानिक हो सकेगा, क्यो कि वह काव्य और दर्शनका स्रोत ही जो होगा।
प्रश्न-हमारा जीवन दो भिन्न रूपोंमें व्यक्त होता दीखता है। एक पारस्परिक संबंध जो नीतिके अंतर्गत है और दूसरे अन्य कार्य-कलाप जिन्हें उपयोगी अथवा ललितकलाओंके ( Useful or Fine Arts के ) दाइरेमें रख सकते हैं। नीति एकरूप है और सबके प्रति उसकी एक-सी माँग है। किन्तु कलाएँ विविध-रूप हैं और वह सब रूपोंमें नहीं, किसी एक ही रूपमें किसी एक व्यक्तिके लिए सुलभ हैं। इसीलिए हम देखते हैं कि पहलेमें प्रतिभाका प्रश्न ही नहीं उठता और दूसरे में मानवकी सहज मनोवृत्ति और उनके अनुसार अमुकके चुनावका (Selection का) प्रश्न होता है जिसे हम प्रतिभाका नाम दे देते हैं। इस तरह जीवनके नैतिक रूपके साथ साथ मानवकी उस मनोवृत्ति और उसके अनुसार उस विशिटांगी चुनावकी प्रवृत्तिको आप क्या उचित नहीं समझते ?
उत्तर-किसी कामके चुनावको और उस कामको करनेकी दक्षताको मैं अनुचित क्यों समझूगा ? अगर उसीका नाम प्रतिभा है, तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन मैं अपनी बात स्पष्ट कर दूँ। हरेक संभवताके दो पहलू होते हैं