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प्रस्तुत प्रश्न
स्वभावतः ( =essentially ) ऐसे साधनोंसे सुसज्जित है कि जिनसे वह शेष जन-समाजका शोषण कर सकता है और करता है और यहाँ तक कि जानते-बूझते ( =Consciously ) ऐसा करनेमें अपना इष्ट समझता है ? और साथ ही क्या आप मानते हैं कि जो लोग उसे ऐसा करनेसे रोकते हैं उनसे वह मोरचा लेता है और लेनेको तैयार रहता है ? यदि ऐसा है, तो फिर उसके दिलमें किस ओरसे परिवर्तनकी गुंजायश रह जाती है ?
उत्तर-कोई विशेष वर्ग ही दूसरेका अहित करके अपना हित साधनेकी इच्छाका शिकार हो, ऐसा मुझे नहीं मालूम होता । इसके बीज लगभग सभीमें हैं, और जो इस प्रभावसे कम-अधिक मुक्त हैं, ऐसे लोग भी थोड़े-बहुत सभी वर्गों में पाये जा सकते हैं। ____ जो आज पैसेवाला है उसके पास पैसके कारण शोपणके साधन हैं, ऐसा समझा जाता है । यह समझना गलत नहीं है। लेकिन जो आज पैसे-वाला नहीं है, वह व्यक्ति इसी कारण भिन्न प्रकृतिका है, और मौका पड़नेपर वह शोषक न होगा, ऐसा समझना ठीक नहीं है । अमीर और गरीबमें, मानव-प्रकृतिकी दृष्टिसे, उस अमीरी गरीबी के कारण अन्तर नहीं माना जा सकता । एकको राक्षस
और दूसरेको देवता रूपमें देखने की आवश्यकता नहीं है । जिसको ‘शोषण' कहा जाता है, उसकी जड़में संकीर्ण स्वार्थकी वृत्ति है । जहाँ जहाँ वैसा संकीर्ण स्वार्थ है, वहाँ शोषण अवश्यंभावी है, चाहे लाख उसे कानूनोंसे रोका जावे । वैधानिक सुधारोंसे निःस्वार्थताके उपयुक्त परिस्थिति पैदा करनेमें मदद ली जा सकती है, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि मुख्य वस्तु नि:स्वार्थता है। ___ अकिंचन व्यक्ति (=The hast-not) या ऐसा वर्ग (=The proletariat) अगर मनमें बल-संचय और अधिकाराहरण के ( =Capture of Power के) मनसूबे रखता है तो शोपण-हीन समाज-व्यवस्था कायम करनेमें वह विशेष सहायक न होगा । अकिंचनता तो भीतर तक पैठी होनी चाहिए, तभी उसके जोरसे शोपणकी भावनाको समाजमेसे निर्मूल किया जा सकता है । ___ इस दृष्टिसे शोपक (=Exploiter) और शोषित (=Exploited) वर्गामें मैं स्थान-भेदके अतिरिक्त कोई और मौलिक भेद नहीं देखता। एकको ढमरेकी जगह बैठा दीजिए. तब भी विशेष अन्तर नहीं मालम होगा। जो आज