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१८ - मजूर और मालिक
प्रश्न - तो यह आप मानते ही हैं कि रोटीकी, उसके साझेबाँटेकी, समस्या हमारे समूचे जीवनकी समस्याका एक भाग है । लेकिन इसके साथ क्या आप यह भी मानेंगे कि इस समस्याका मूल कारण हमारे मशीन - युगके कारण बन गई हुई पूँजीपति और मजदूर ये दो श्रेणियाँ हैं ?
उत्तर - नहीं, यह नहीं मानता। मशीन युग स्वयं व्याधिका चिह्न और फल है, कारण नहीं । उसे कारण मानना बातका अपने हाथसे बाहर फेंक देना है ।
प्रश्न - पूंजीपति अपनी पूँजीके वलसे मजदूरोंसे मनमाना काम करता है और कमसे एवज कम देता है, इसकी संभावना मशीनयुगसे पहिले नहीं थी, क्या आप इससे इंकार करते हैं ?
उत्तर - मशीन - युग से पहिले मशीन नहीं थी, इसलिये मालिक एक साथ बहुत से मज़दूरोंकी जानको इस भाँति अपनी मुट्ठी में भी नहीं रखता था ।
लेकिन तब गुलामीकी प्रत्यक्ष परोक्ष कई अन्य प्रथाएँ थीं । क्या वे मजदूरीप्रथा से कम अनिष्ट थीं ?
प्रश्न -- गुलामी प्रथा इससे कहीं बढ़कर अनिष्ट थी । लेकिन सभ्यताकी ओर अग्रसर मानव-जातिने उसका प्रतीकार भी किया । तो क्या इस मज़दूरी- प्रथाको भी उसी प्रकारका अनिष्ट मानकर उसका प्रतीकार करना नहीं चाहिए ?
उत्तर—क्यों नहीं करना चाहिए ? किसीको क्या हक है कि दूसरे मनुष्य के रिश्तेमें वह अपनेको मालिक माने या कि अपनेको उसका आश्रित मजूर माने ? दोनों तरह से यह मानवताका अपमान है और इसमें आत्मघात है । दो आदमियोंके बीच मालिक नौकरका रिश्ता सामाजिक पाप है । इसलिए एक लिहाज़ से यह व्यक्तिगत पापसे भी अधिक चिन्तनीय है ।
प्रश्न - तब यह मजूर - मालिककी समस्या इस युगकी होनेमें